फूल और इंसान: संघर्ष की दो राहें

प्रकृति और मानव जीवन में संघर्ष का एक गहरा संबंध है। एक बीज से सुंदर फूल बनने की यात्रा और एक बच्चे से सफल व्यक्ति बनने की राह, दोनों में कठिनाइयाँ तो होती हैं, पर इनकी चुनौतियाँ और परिस्थितियाँ अलग-अलग होती हैं। आइए इन दोनों सफरों को समझने की कोशिश करते हैं।

फूल का संघर्ष

एक नन्हा बीज जब धरती में बोया जाता है, तो उसकी यात्रा शुरू होती है। मिट्टी के अंदर अंधकार, नमी और अनिश्चितता से भरा वातावरण उसका पहला घर बनता है। बीज को अंकुरित होने के लिए मिट्टी की परतों को चीरना पड़ता है, पानी और सूरज की किरणों तक पहुँचने के लिए खुद को आगे बढ़ाना पड़ता है। यह प्रक्रिया स्वाभाविक होती है—बीज को कोई मानसिक उलझन या भावनात्मक तनाव नहीं होता। उसकी ऊर्जा केवल प्रकृति के नियमों पर आधारित होती है।

जब फूल खिलता है, तो वह बिना किसी अपेक्षा के अपनी खुशबू और सुंदरता दुनिया में बाँटता है। उसे आलोचना या प्रशंसा की परवाह नहीं होती। उसका उद्देश्य केवल खिलना और प्रकृति का हिस्सा बनना होता है।

इंसान का संघर्ष

दूसरी ओर, एक बच्चे का जन्म भी संघर्ष का प्रतीक है, लेकिन यह यात्रा केवल शारीरिक नहीं होती। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसे समाज के बनाए गए नियमों, अपेक्षाओं और मान्यताओं का सामना करना पड़ता है। उसे सफलता के पैमानों पर खरा उतरने के लिए लगातार प्रयास करना पड़ता है। पढ़ाई, प्रतियोगिता, करियर, सामाजिक दबाव—ये सभी उसे मानसिक और भावनात्मक रूप से चुनौती देते हैं।

फूल की तरह इंसान भी खिलता है, लेकिन उसके खिलने पर समाज की प्रतिक्रिया होती है। यदि वह असफल होता है, तो आलोचना झेलनी पड़ती है, और यदि सफल होता है, तो प्रशंसा मिलती है। यह भावनात्मक उतार-चढ़ाव उसे या तो मजबूत बनाता है या तोड़ देता है।

फूल बनाम इंसान: संघर्ष में अंतर

  1. प्राकृतिक बनाम सामाजिक संघर्ष: फूल का संघर्ष पूरी तरह प्राकृतिक है, जबकि इंसान का संघर्ष सामाजिक अपेक्षाओं और भावनाओं से जुड़ा होता है।
  2. निर्दोषता बनाम भावनाएँ: फूल बिना किसी भावना के खिलता है, लेकिन इंसान अपने हर कदम के साथ भावनाओं का बोझ उठाता है।
  3. उद्देश्य: फूल का उद्देश्य केवल खिलना है, जबकि इंसान को खुद के लिए, परिवार के लिए और समाज के लिए भी सफल होना पड़ता है।
  4. असफलता का प्रभाव: फूल अगर नहीं खिलता तो बस मुरझा जाता है, लेकिन इंसान की असफलता उसके आत्मविश्वास और भावनात्मक स्थिति पर गहरा असर डालती है।

निष्कर्ष

फूल और इंसान दोनों ही संघर्ष के प्रतीक हैं, लेकिन इंसान का संघर्ष कहीं अधिक जटिल और भावनात्मक होता है। फिर भी, अगर हम फूल से यह सीखें कि बिना किसी अपेक्षा के अपने जीवन में खिलना है, तो शायद हमारा सफर भी थोड़ा सरल और सुंदर हो जाए। संघर्ष हर किसी का हिस्सा है, लेकिन उसे कैसे झेलना है, यह हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।

तो चलिए, संघर्ष करें लेकिन फूल की तरह खिलना न भूलें!

    Most Frequently Asked Questions in Class 10 English Board Exam

    Every year, millions of students prepare for their Class 10 board exams, where English is a crucial subject. Both English Language and Literature play a significant role in the exam, and with the right strategy, students can score well. In this blog, we will discuss the most frequently asked questions in the Class 10 English board exam.

    1. Important Prose Questions:

    The prose section includes various stories and essays, and the following chapters are commonly tested:

    • “A Letter to God” (G.L. Fuentes):
      • Questions on Lencho’s faith and belief in God.
      • The farmer’s struggles and his thoughts.
    • “Nelson Mandela: Long Walk to Freedom” (Nelson Mandela):
      • Questions about Nelson Mandela’s struggle and fight for freedom.
      • His vision of equality and justice.
    • “Two Stories about Flying”:
      • Life lessons from the birds learning to fly.
    • “From the Diary of Anne Frank”:
      • Questions related to Anne Frank’s life, struggles, and ideologies.

    2. Important Poetry Questions:

    Understanding the depth of poems and their themes is crucial. Focus on the following poems:

    • “Dust of Snow” (Robert Frost):
      • How small things can make a big impact on life.
    • “Fire and Ice” (Robert Frost):
      • The poet’s perspective on the possible end of the world.
    • “The Ball Poem” (John Berryman):
      • Lessons of loss and experience in life.

    3. Important Writing Skills Questions:

    • Formal Letter Writing:
      • Complaint, request, or suggestion-based letters.
    • Essay Writing:
      • Writing on current topics such as climate change, the impact of technology, etc.
    • Story Writing:
      • Creating a creative story based on a given theme.

    4. Important Grammar Questions:

    • Tenses and sentence formation
    • Active and passive voice
    • Direct and indirect speech

    5. Important Reading Comprehension Questions:

    The exam includes unseen passages and poems with related questions.

    How to Prepare Effectively?

    If you focus on these important questions and practice consistently, your chances of success will significantly increase. With hard work and the right strategy, scoring good marks is achievable.

    Best of Luck!

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    दसवाँ अंश: आत्मिक और आर्थिक उन्नति का साधन

    Giving offering in church.

    इस दुनिया में पैसे के बिना कोई कुछ भी सोचने-समझने की स्थिति में नहीं होता। एक पल के लिए सोचकर देखिए, बिना पैसे के जीवन में कुछ भी संभव नहीं लगता। यह केवल आज की बात नहीं है; धन का लेन-देन प्राचीन काल से चला आ रहा है, हालांकि उस समय इसे “पैसा” नहीं कहा जाता था। प्राचीन काल में लोग “लो और दो” की प्रक्रिया से काम करते थे, जिसे हम “बार्टर सिस्टम” के नाम से जानते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि धन का महत्व हर युग में मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है।

    दसवां अंश (tithes) से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQs)

    प्रश्न 1: दसवां अंश (tithes) क्या है?

    प्रश्न 2: मुझे अपनी आय का कौन-सा हिस्सा दसवां अंश में देना चाहिए?

    प्रश्न 3: दसवां अंश किसे दिया जाना चाहिए?

    प्रश्न 4: क्या दसवां अंश देना अनिवार्य है?

    प्रश्न 5: दसवां अंश देने के क्या लाभ हैं?

    प्रश्न 6: क्या मैं दसवां अंश देने के लिए नकद के अलावा अन्य तरीकों का उपयोग कर सकता हूँ?

    प्रश्न 7: यदि मैं दसवां अंश न दूँ, तो क्या होगा?

    तमाम प्रश्नों के उत्तर आपको यही मिलेंगे।

    दसवां अंश देना न केवल प्रभु के प्रति आभार व्यक्त करने का साधन है, बल्कि यह आत्मिक और आर्थिक उन्नति की कुंजी भी है। विश्वास के साथ इसे अपने जीवन में अपनाएं

    पैसा, हर एक के जीवन में उनत्ति या प्रगति का कारण होता है। सोच के देखिए आपके घर की हर एक जरुरत क्या बिना पैसा के पूरा हुआ है, जवाब है – नहीं। आप सोच रहे होंगे मै ये क्यों बोल रहा हूँ। मसीह के चेले होने के नाते हमारी आर्थिक धन ही हमारे जीवन का सफल या असफल होने का वजह है। अगर आपका दुःख दर्द वर्षो से खत्म नहीं हो रहा है, बना बनाया हुआ काम बिगड़ जाता है, कुछ अच्छा करने जाओ तो बुरा ही हो जाता है, पैसा बचाना चाहो तो पैसा आते ही हाथ से गायब हो जाता है, आपके बहुत परिश्रम करने पर भी कोई उन्नति नहीं दिख रही, प्रार्थना करते हो, हमेशा चर्च जाते हो – फिर भी ना ख़ुश हो……इसी तरह आपके जीवन में कई परेशानी देखने को मिलता होगा जिसका एक मात्र कारण बस – ” पैसा ” है। अब आप सोच रहे होंगे की ऐसे कैसे एक सांसारिक वस्तु आपके आत्मिक जीवन को इतना बड़ा प्रभाव डाल सकता है।

    क्या आप प्रभु के सच्चे आराधक है? परमेश्वर हमसे एक सच्ची आराधना की चाह करते है क्योंकि की बाइबिल कहती है सच्चे आराधक वही है जो परमेश्वर की आराधना पुरे तन – मन – धन से करते है। हम प्रभु की आराधना तन और मन से तो करते है पर क्या सही में हम धन से भी उसकी आराधना करते है। अगर नहीं तो फिर हम सब सच्चे आराधक नहीं है और अगर नहीं है अब हमें सच्चे आराधना करने वाले होना चाहिए। अब सवाल है – कैसे? जिसका एक मात्र जवाब है – दसमांश। इसका क्या अर्थ है? आपके धन का दसमां भाग प्रभु का है – आपके कमाई का पूर्ण भाग में दसमां अंश ईश्वर का है, आपका नहीं। यही अंश प्रभु को देना एक दसमांश कहलाता है। अगर आपका वेतन 10,000 रूपये है तो उसमे से 1000 रुपये आपका नहीं बल्कि प्रभु का है। आपको दस बोरी गेहूँ मिलता है या 50 किलो आलू मिलता है तब उसमे से 1 बोरी गेहूँ और 5 किलो आलू आपका नहीं है, परमेश्वर का है।

    परमेश्वर को दिया जाने वाला अंश यदि हम नहीं देते है और अपने पास रखते है तो परमेश्वर उसे चोरी के सामान देखते है। दसवाँ अंश नहीं देना बैंक के घुसकर वहां का सारा धन लूट लेने के बराबर जैसा है।परमेश्वर का वचन – मलाकी 3: 7 – 9 में ऐसे लोगो को ” श्रपित ” का दर्जा देते है। प्रभु के अंश को ना देना अपने जीवन में परेशानी को नेवता देने जैसा होता है। अगर आप व्यवस्थाविवरण 28 : 15 – 68 में पढ़ेंगे तो पायेंगे की दुनियाँ के तमाम प्रकार के कष्ट और दुःख आपके काल को एक श्राप जैसा मालूम कराएगा। इसका सीधा – सीधा मतलब है की हमारे पास जो है वो हमारा है ही नहीं – जो कुछ धन – सम्पति हमारे पास है उन सबका वास्तविक मालिक परमेश्वर है केवल इतना ही नहीं यह सब मालिक की मन के अनुसार इस्तेमाल करने के लिए ही हमें सौंपा गया है। हम मालिक नहीं हम बस भण्डारी हैं। इन सबका ज्ञान हमें प्रभु के वाचन से मिलता है ” देख, जो कुछ सारी धरती पर है सो मेरा है ” (अय्यूब : 41 : 11 ) इस तरह के और भी वचन है जो हमें सिखाते है की हमारी सारी वस्तु जो कहने को बस हमारे है पर हम तो एक भण्डारी है – आपका वाहन, घर, बैंक में जमा राशि, वस्त्र, झाड़ू, फ्रिज, साईकल, चूल्हा, बच्चे, पत्नी, पालतू जानवर, आपका खेत, सब्जी काटने वाला चाकू इत्यादि जो कुछ आप अपना समझते या कहते है – याद रखे की आप इनके मालिक नहीं है। इन सबके आप बस भण्डारी है।

    भण्डारी से तात्पर्य है की आप रखवाला है, जैसे एक बैंक मैनेजर के पास करोड़ों रूपये है पर मैनेजर इन पैसों को अपने काम के लिए खर्च नहीं कर सकता है। वह बस उन पैसों का रखवाली करता है। परमेश्वर का हमसे दसमांश देने को कहने के पीछे एक व्यवहारिक कारण है साथ ही साथ हमें यह समझना भी है की यह हमारे आत्मिक और आर्थिक आशीष का माध्यम है।

    जो है आपके पास वही दो प्रभु को //

    प्रभु का वचन कहता है – परमेश्वर भला है। जो कुछ हमें मिल रहा है उन सबका दसवां अंश देना यह आज्ञा मनुष्य ने नहीं बल्कि परमेश्वर ने दिया है। ” और उसकी आज्ञा कठिन नहीं है ” (1यहुन्ना 5:3)अब तक आपके दिमाग में ये आ गयी होंगी की हमारे जीवन में दसमांश का महत्त्व क्या है। आइये इसे विस्तार से प्रभु के वचनों के साथ देखते है की दसमांश का उदेश्य क्या है।

    1. परमेश्वर के राज्य की बढ़ोतरी होना।
      प्रेरितों के काम 13:1-2 में हम पढ़ते है की पवित्र आत्मा अन्ताकिया की कलीसिया से कहते की पौलुस और बरनबास को परमेश्वर के बुलाहट के अनुसार सेवकाई के लिए भेजा। इसका अर्थ है की केवल प्रार्थना और हाथ रखना ही नहीं बल्कि उनको आर्थिक तौर से भी संभालने की जिम्मेदारी, कलीसिया की है। ” और यदि भेजे न जाए तो क्योंकर प्रचार करें। ” (रोमियो 10 : 13 – 17 ) इस प्रश्न का पूछे जाने का उदेश्य ही यही है की कलीसिया परमेश्वर के राज्य के बढ़ोतरी के लिए धन सहयोग दें। उसके लिए स्थानीय कलीसिया के विश्वासी का दसमांश और भेंट देना जरुरी है।

    अनाथ एवं विधवाओं की मदद, असहाय बच्चों को शिक्षा देना, समूह में कलेश झेलने वालों के बीच राहत कार्य करना आदि सैकड़ो सामाजिक सेवा करना एक कलीसिया का जिम्मेदारी है। ऐसे कार्य के लिए बहुत धन की जरुरत होती है। आप और हम जब तक कलीसिया को दसवां अंश और भेंट नहीं देंगे तब तक ये कार्य कलीसिया प्रारम्भ नहीं कर सकती। और अगर हम ये नहीं करते तो आप ये जान ले की आप प्रभु की राज्य की बढ़ोतरी के लिए बाधा डाल रहे है। लेकिन उनकी राज्य के बढ़ोतरी के प्रभु अपने वचन – मत्ती 6:19-21 में कहते है की ऐसे देनेवालों के लिए स्वर्ग में बहुत से प्रतिफल है। यह केवल कलीसिया की नहीं, बल्कि हमारे सामूहिक प्रयासों, और व्यक्तिगत सोच और कार्यों का मामला है, ताकि हम आपस में एकजुट होकर और सत्य के मार्ग पर चलकर, अपने अंदर और समाज में परिवर्तन ला सकें। यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण दायित्व है जिसे हमें समझना और निभाना चाहिए। कलीसिया का हर सदस्य इन जिम्मेदारियों का एक हिस्सा होता है, और यही सहयोग हमारे विश्वास का प्रमाण है।

    1. हमारी आर्थिक उन्नति होती है। हम सब ये जानते है की प्रभु हमें कई गुना ज्यादा देते है जितना हम उसे देते है बस शर्त इतना है इस उन्नति और आशीष को पाने के लिए आपके पास विश्वास होना आवश्यक है। ” जैसा तेरा विश्वास है, वैसा ही तेरे लिए हो। ” (मत्ती 8:13) ऐसा वचन कहता है। किसी पर भरोसा करें या ना करें प्रभु के वचन पर भरोसा करना ही हमारा प्राथमिकता होनी चाहिए जैसे की मरकुस 9:23 में लिखा है ” विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ हो सकता है। ” कहने का अर्थ है की यदि परमेश्वर के वचन में दिए गए वायदाओं पर आप विश्वास कर के उसका पालन करते और उसके अनुसार चलते है तो परमेश्वर ने कहा है वो होगा। जब हम परमेश्वर के लिए देते है तब परमेश्वर का वायदा हमारे जीवन में पूरा होता है। इसके द्वारा विश्वास बढ़ता है और विश्वास रखने के द्वारा हमारी आर्थिक उन्नत्ति होती है।

    मुझे एक कहानी याद है जो मेरे एक दोस्त ने मझे बताया था क्योंकि ये घटना उसकी गवाही है। एक आदमी की आर्थिक कमाई बस उसके व्यवसाय पर ही निर्भर करता है, घर का पूरा परिवार उसकी रोज की कमाई पर आश्रित हुआ करता था। इसलिए वो रविवार को भी चर्च ना जा कर दुकान में ही काम करते रह जाता था। मेरे दोस्त के एक दोस्त ने ये सब देख रखा था सो एक दिन उसने उस आदमी से बात किया की उसे चर्च जाना चाहिए। इस पर उस आदमी ने पूरी दुःख भारी कहानी सुना दी। उसने उस आदमी से एक बात कहा की वो बस एक रविवार को अपनी दुकान बंद करके चर्च में सम्मिलित हो। और वो आदमी भी मान गया क्योंकि मेरे दोस्त के दोस्त ने उसे ये कहा की सोमवार से रविवार तक की कमाई जितनी होंगी उसे कही ज्यादा बस शनिवार तक के काम से आ जायेगा। आश्चर्य की बात उनके लिए और हमारे लिए गवाही – की उसके एक दिन के बंद के वजह से उसे हो रही कमाई से काफ़ी ज्यादा धन मिल गया था। लुका : 6:38 में लिखा है – ” दिया करो तो तुम्हे भी दिया जायेगा……

    1. कलीसिया के अवश्यकताएं पूरी होना। एक कलीसिया की कई जरुरत होती है। सुसमाचार प्रचार का कार्य, कान्वेंशन, ज़मीन खरीदारी, चर्च बनना, बिजली, पानी और पास्टर के परिवार के खर्चे, उनके बच्चे की शिक्षा, संडे स्कूल के कार्यक्रम, महिलाओं की सेवकाई, जवानों की संगती, कलीसिया में बाइबिल अध्ययन के लिए गए विद्यार्थियों के लिए आर्थिक सहायता, इस प्रकार ना जाने कितने अवश्यकताओं के लिए एक कलीसिया को खर्च करना पड़ता है। मुझे जितना पता था और देखा हुआ है मैंने लिख दिया पर ये भी मालूम है की इस से भी कही ज्यादा खर्चा हुआ करता है।

    चर्च के पास्टर को कोई वेतन नहीं मिलता ओरों के जैसा, क्योंकि ये एक सेवा है। आप और हम तो मासिक वेतन या देहाड़ी पर काम करते है जिससे हमारी जीविका सांसारिक तौर से चलता है। हालांकि की कुछ संस्थाएं है जो बहुत से चर्च को सहयता राशि देते है पर आपको बता दूँ वो राशि उनके लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए चाहिए की हम सब अपने सेवक की मदद करें। हमारा पास्टर हमारा चरवाहा है और हम उनके भेड़े है। एक कलीसिया का सेवक वहाँ के भेड़ों अर्थात् वहाँ के विश्वासियों का चरवाहा है। प्रेरितों के काम : 20:28। एक सेवक को अच्छी तनख्वाह दें कर उनका ख्याल रखना एक कलीसिया की जिम्मेदारी है और कलीसिया हम और आप से ही बनता है। 1कुरिन्थियों 9:7 में परमेश्वर का वचन में कहता है भेड़ों की रखवाली करनेवाला उसके दूध से जीविकोपार्जन करें।

    1. आर्थिक विपत्ति से बचाव। दसवाँ अंश देने वाला व्यक्ति को होने वाली आर्थिक विपत्ति से परमेश्वर बचाएगा। दसवाँ अंश देने वाले व्यक्ति को, परिवार को परमेश्वर बड़ा बांधकर नाश और शत्रुओं से बचाता है। अय्यूब के घर के चारों ओर परमेश्वर ने बड़ा बांधकर स्वर्गदूतों के द्वारा सुरक्षित रखा। (अय्यूब 1:10) कितनी भी कोशिश करने के बावजूद भी शैतान अय्यूब को या उसकी आशीषों को छू नहीं पाया। दसवाँ अंश देने वालों के 90 प्रतिशत पैसा, दसवाँ अंश नहीं देने वालों के 100 प्रतिशत से अधिक फल देता है।

    “सारे दशमांश भण्डार में ले आओ कि मैं तुम्हारे लिए नाश करनेवाले को ऐसा झिड़कूँगा कि वह तुम्हारी भूमि की उपज नाश न करेगा। और तुम्हारी दाखलताओं के फल कच्चे न गिरेंगे।” (मलाकी 3:10-11) यीशु ने कहा कि हमारी आर्थिक और आत्मिक बल की शान्ति का दुश्मन शैतान है। (यूहन्ना 10:10) हमारे विनाश के लिए शैतान दिन-रात कोशिश करता है। हमारे हर एक भण्डारियों को निष्फल बनाने के लिए वह कार्य करता है। दसवाँ अंश देने वालों के कार्यों में, मेहनत में, नौकरी पर प्रभु उसको शैतान के हर एक चाल से बचाता है।

    तो कुछ इस प्रकार से हम देख सकते है की हमारे जीवन में दसमांश ही एक मात्र ऐसा साधन से जिस से हमारे आत्मिक जीवन को विकाश की राह में ले कर चल सकते है। इस लेख का निष्कर्ष यही है कि धन, जो हमें ईश्वर की कृपा से प्राप्त होता है, जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यह केवल सांसारिक सुख के लिए नहीं बल्कि आत्मिक प्रगति के लिए भी है। प्रभु ने हमें भौतिक संपत्ति और साधनों का भण्डारी बनाकर सौंपा है, और दसमांश के माध्यम से हम उनकी महिमा कर सकते हैं।

    दसमांश का अर्थ केवल आर्थिक योगदान नहीं, बल्कि अपनी श्रद्धा, आस्था, और ईश्वर पर पूर्ण विश्वास का प्रतीक भी है। जब हम अपने धन का एक अंश प्रभु को समर्पित करते हैं, तो हम उस आशीर्वाद और कृपा के मार्ग खोलते हैं, जो हमारे जीवन को सकारात्मकता, समृद्धि और आत्मिक शांति से भर देता है। प्रभु का मार्ग हमें दिखाता है कि सच्ची समृद्धि केवल अपने लिए नहीं बल्कि देने में है, और यही देने की प्रक्रिया हमें आशीर्वाद, संतोष, और परम शांति का अनुभव कराती है।

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    “Career Choice in India: The Importance of Career Guidance for Students”

    Why Career Choice in India is a Challenge: The Need for Career Guidance

    In India, choosing the right career has become one of the most challenging tasks for students. The traditional mindset of parents and the rigid structure of the education system often create undue pressure on children. Many parents impose their aspirations on their children, expecting them to fulfill dreams that may not align with the child’s interests or abilities.

    The Root of the Problem

    From an early age, children in India are often told what career they must pursue, regardless of their skills or passions. Statements like, “You must become a doctor,” or “Engineering is the only respectable profession,” are commonplace. This preconceived notion of success leads to a mismatch between the child’s natural abilities and the career path chosen for them.

    Adding to the problem is the lack of awareness about diverse career options. Schools primarily focus on textbook knowledge, emphasizing rote learning rather than fostering creativity, critical thinking, or real-world problem-solving skills. As a result, students are not exposed to practical applications or alternative career possibilities, leaving them confused and directionless when it’s time to make career decisions.

    The Role of Parents

    Often fail to recognize the importance of their child’s interests and talents. Instead, they prioritize stable or prestigious professions, believing that these careers ensure financial security and social respect. Unfortunately, this mindset ignores the child’s individuality and potential, leading to dissatisfaction and underperformance in later years.

    The Education System’s Contribution

    The Indian education system largely overlooks the importance of career planning and personal development. Schools are exam-focused, emphasizing marks over skills. Career counseling or guidance programs are either non-existent or insufficient. Consequently, students graduate with no clarity about their future paths, further fueling stress and anxiety.

    Why Career Guidance Is Essential

    Career guidance plays a pivotal role in helping students identify their strengths, weaknesses, and interests. Here’s why it’s crucial:

    Clarity and Confidence: Career guidance provides students with a clear understanding of their options and aligns their goals with their passions.

    Skill Development: It helps students focus on developing relevant skills for their chosen fields rather than blindly following societal expectations.

    Better Decision-Making: With proper guidance, students can make informed career choices that resonate with their long-term aspirations.

    Reduced Stress: Knowing the right path reduces the pressure and confusion often associated with career selection.

    How to Improve the System

    Introduce Career Counseling in Schools: Schools should conduct regular career guidance sessions and workshops to help students explore different career options.

    Encourage Parental Awareness: Parents need to understand the importance of their child’s interests and capabilities. Parenting workshops or counseling can help bridge the gap.

    Focus on Skill-Based Education: The education system must integrate skill-building and practical learning into the curriculum, allowing students to discover their potential.

    Leverage Technology: Online career guidance platforms and aptitude tests can assist students in identifying suitable career paths.

    Conclusion

    Choosing a career in India shouldn’t be a burden for students. Parents, educators, and society as a whole must work together to create an environment where students feel supported in pursuing careers that align with their passions and abilities.

    Career guidance is not a luxury but a necessity to ensure that every child achieves success and happiness in their chosen field.By acknowledging and addressing these challenges, we can pave the way for a generation that is confident, skilled, and ready to take on the future.

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    भारत में छात्र आत्महत्या: एक बढ़ती समस्या

    भारत में छात्र आत्महत्या दर चिंताजनक स्तर पर है, जिसके पीछे शैक्षणिक दबाव, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ, और सामाजिक अपेक्षाएँ जिम्मेदार हैं। जानें इस मुद्दे के कारण, प्रभाव, और समाधान जो छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को बचाने में मदद कर सकते हैं।

    भारत में छात्र आत्महत्या एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है, जहाँ शैक्षणिक दबाव, सामाजिक अपेक्षाएँ और व्यक्तिगत चुनौतियाँ आत्महत्या के मामलों में खतरनाक वृद्धि का कारण बन रही हैं। देश का प्रतिस्पर्धी शैक्षणिक प्रणाली अक्सर छात्रों पर भारी दबाव डालती है, जिससे कई छात्र मानसिक थकान और निराशा के कगार पर पहुँच जाते हैं। यह रिपोर्ट इस मुद्दे के कारणों, रुझानों और संभावित समाधानों की जांच करती है।

    राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2021 में ही 13,000 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की, और इन मामलों में साल-दर-साल वृद्धि देखी जा रही है। इसका मतलब है कि हर दिन लगभग 35 छात्र आत्महत्या करते हैं। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु उन राज्यों में शामिल हैं, जहाँ सबसे ज्यादा छात्र आत्महत्याएँ होती हैं।

    छात्राओं के आत्महत्याओं के अनेकों कारण है पर उन मे से कुछ मुख्य भी है जैसे

    1. शैक्षणिक दबाव: भारत में छात्र आत्महत्याओं का प्रमुख कारण अत्यधिक शैक्षणिक दबाव है। शिक्षा प्रणाली अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक है, और छात्र अक्सर माता-पिता, शिक्षकों और समाज की अवास्तविक अपेक्षाओं का सामना करते हैं कि वे परीक्षाओं में शीर्ष रैंक प्राप्त करें, विशेष रूप से NEET, JEE और बोर्ड परीक्षाओं जैसे राष्ट्रीय स्तर के परीक्षाओं में।

    2. माता-पिता की अपेक्षाएँ: भारतीय माता-पिता अक्सर अपने बच्चों से उच्च अंक प्राप्त करने और इंजीनियरिंग, चिकित्सा या अन्य प्रतिष्ठित क्षेत्रों में करियर बनाने की अपेक्षा करते हैं, चाहे बच्चे की रुचियाँ कुछ भी हों। अपने माता-पिता को निराश करने या असफल दिखने के डर से कई छात्र अवसाद और आत्मघाती विचारों में पड़ जाते हैं।

    3. मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ : भारत में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता अभी भी सीमित है, और अवसाद, चिंता या अन्य मानसिक समस्याओं से जूझ रहे छात्रों को उचित समर्थन शायद ही मिल पाता है। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जुड़ी सामाजिक कलंक के कारण छात्रों के लिए मदद लेना मुश्किल हो जाता है।

    4. धमकाना और सामाजिक अलगाव: धमकाना, साथियों का दबाव और अलगाव की भावना भी छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है। सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के कारण साइबरबुलिंग ने भी छात्रों पर बढ़ते तनाव में इजाफा किया है।

    अंतिम एवं मुख्य कारण है ‘ मुकाबला करने की क्षमता की कमी’

    बच्चे पर परिवार का दवाब तथा असहयोग

    कई छात्रों के पास तनाव, असफलता, या अस्वीकृति से निपटने के लिए आवश्यक क्षमताएँ नहीं होती हैं। शिक्षा प्रणाली अकादमिक सफलता पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है, बजाय जीवन कौशल, भावनात्मक बुद्धिमत्ता, या मानसिक स्थिरता सिखाने के।

    COVID-19 का प्रभावCOVID-19 महामारी ने छात्रों के बीच मानसिक स्वास्थ्य संकट को और बढ़ा दिया। स्कूल और कॉलेज बंद होने के कारण छात्रों की शिक्षा बाधित हुई, अकेलापन बढ़ा, और भविष्य के प्रति अनिश्चितता ने आत्महत्या के विचारों को बढ़ावा दिया। कई छात्रों के लिए ऑनलाइन शिक्षा के अनुकूल होना मुश्किल साबित हुआ, और लॉकडाउन के दौरान अकेलापन उनके हताशा की भावनाओं को बढ़ा गया।

    सरकार और एनजीओ की पहल

    इस संकट को संबोधित करने के लिए सरकार और विभिन्न एनजीओ ने हेल्पलाइनों, परामर्श सत्रों और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियानों जैसे उपाय शुरू किए हैं। शिक्षा मंत्रालय ने *मनोदर्पण* जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिसका उद्देश्य तनावपूर्ण परिस्थितियों में छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को मानसिक समर्थन प्रदान करना है।

    समाधान और सिफारिशें

    1. मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता: स्कूलों और कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए। नियमित कार्यशालाएँ और परामर्श सत्र आयोजित किए जाने चाहिए ताकि छात्र तनाव और चिंता को संभाल सकें।

    2. माता-पिता की काउंसलिंग: माता-पिता को अपने बच्चे की क्षमताओं और रुचियों को समझने के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। घर में ऐसा समर्थनात्मक वातावरण बनाना महत्वपूर्ण है जो समग्र विकास पर केंद्रित हो, न कि केवल अकादमिक प्रदर्शन पर।

    3. शिक्षा प्रणाली में सुधार: शिक्षा प्रणाली को अंक-उन्मुख से कौशल-उन्मुख में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है। जीवन कौशल, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और तनाव प्रबंधन को पाठ्यक्रम में शामिल करना छात्रों को चुनौतियों का सामना करने में मदद करेगा।

    4. हेल्पलाइन और परामर्श सेवाएँ : अधिक सुलभ हेल्पलाइनों, परामर्श केंद्रों और सहायता समूहों की स्थापना की जानी चाहिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। छात्रों को उन पेशेवरों तक आसानी से पहुंच होनी चाहिए जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में उनकी मदद कर सकते हैं।

    5. परीक्षा के दबाव को कम करना: परीक्षा प्रणाली को फिर से संरचित किया जाना चाहिए ताकि छात्रों पर दबाव कम हो सके। निरंतर मूल्यांकन, अधिक व्यावहारिक शिक्षा दृष्टिकोण, और उच्च-दांव वाली परीक्षाओं पर कम ध्यान केंद्रित करने से शिक्षा कम तनावपूर्ण होगी।

    निष्कर्ष

    भारत में बढ़ती छात्र आत्महत्या दर एक गहरे सामाजिक समस्या का प्रतिबिंब है जिसे तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि शैक्षणिक सफलता किसी छात्र के मूल्य को परिभाषित नहीं करती। शैक्षणिक दबाव को कम करने, मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने और छात्रों को भावनात्मक रूप से समर्थन देने के प्रयासों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि युवाओं के जीवन को इस दुखद अंत से बचाया जा सके। हर एक बचाई गई जान एक स्वस्थ और अधिक सहानुभूतिपूर्ण समाज की दिशा में एक कदम है।

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    सच बोलने की कीमत: एक प्रेरणादायक कहानी

    जानिए एक ईमानदार शिक्षक की कहानी, जिसने सच्चाई की राह पर चलते हुए बड़े संघर्षों का सामना किया। “सच बोलने की कीमत” को दर्शाती यह कहानी सच्चाई और साहस का प्रतीक है।

    संदीप जेल की सलाखों के पीछे बैठा था। उसकी आँखें खाली दीवार को घूर रही थीं। कुछ ही घंटों में उसे कोर्ट में पेश किया जाना था। एक निर्दोष व्यक्ति, जो केवल सच बोलने के लिए जाना जाता था, आज अपराधी की तरह कैद में था। यह कहानी यहीं से शुरू होती है, जहाँ सच्चाई और झूठ के बीच की लड़ाई ने एक इंसान की पूरी जिंदगी बदल दी।

    "A teacher sitting behind jail bars, symbolizing truth and struggle."

    संदीप एक छोटे से गाँव का स्कूल शिक्षक था। उसे अपनी ईमानदारी और सच्चाई के लिए जाना जाता था। बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ वह उन्हें हमेशा एक सीख देता था। “सच बोलो, चाहे दुनिया तुम्हारे खिलाफ हो जाए। लेकिन यह सीख उसकी जिंदगी को उस मोड़ पर ले आई। जहाँ उसकी सच्चाई ने उसके अपने जीवन को सवालों के घेरे में डाल दिया। गाँव के मुखिया, रामलाल, दिखावे में तो गाँव के भले के लिए काम करते थे। लेकिन उनकी असलियत कोई नहीं जानता था। एक दिन, संदीप ने देखा कि स्कूल के मरम्मत के लिए आए सरकारी पैसे का बड़ा हिस्सा रामलाल ने अपने पास रख लिया। जब पंचायत में यह मुद्दा उठा, तो संदीप ने सबके सामने रामलाल की चोरी का पर्दाफाश कर दिया। “मुखिया जी, आप बच्चों के भविष्य के साथ खेल रहे हैं। यह पैसा स्कूल के लिए था, न कि आपके लिए,” संदीप ने दृढ़ता से कहा।

    रामलाल भरी पंचायत में अपमानित हुए। लेकिन उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि वह संदीप को इसका अंजाम भुगतने पर मजबूर करेंगे। संदीप की सच्चाई ने गाँववालों का ध्यान तो खींचा। इस वजह इसका अंजाम भयावह था। अगले ही दिन स्कूल में एक झूठी शिकायत दर्ज कराई गई कि संदीप ने एक छात्र के साथ दुर्व्यवहार किया है। गाँव में अफवाहें फैल गईं। “मैंने कुछ नहीं किया, ये सब झूठ है,” संदीप ने कहा। लेकिन लोगों ने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया। जिन गाँववालों के लिए वह हमेशा खड़ा रहता था, वे अब उसकी तरफ उँगलियाँ उठा रहे थे। संदीप की पत्नी, कविता, इस परिस्थिति से टूट गई थी। “हमने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो हमें ये दिन देखना पड़ रहा है?” उसने रोते हुए कहा।

    संदीप ने उसे समझाते हुए कहा, “सच की राह पर चलने वालों को ये सब सहना पड़ता है। लेकिन मैं झूठे इल्ज़ाम को सहन नहीं कर सकता।” गाँव में जाँच शुरू हुई। रामलाल ने अपनी ताकत और पैसे का इस्तेमाल करते हुए सबूतों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। पंचायत ने बिना जाँच-पड़ताल के संदीप को दोषी ठहरा दिया। उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। गाँववालों ने उससे मुँह मोड़ लिया, और अब वह जेल में था। लेकिन जेल की कोठरी में बैठा संदीप टूटने के बजाय पहले से ज्यादा मजबूत महसूस कर रहा था। “सच को दबाया जा सकता है, लेकिन हराया नहीं जा सकता,” वह खुद से कहता। कुछ हफ्तों बाद, राज्य के एक ईमानदार सरकारी अधिकारी ने गाँव का दौरा किया। उन्होंने स्कूल फंड की जाँच की और पाया कि असली दोषी रामलाल था। सारे सबूत इकट्ठे कर उन्होंने कोर्ट में पेश किए।

    रामलाल की चोरी और संदीप पर झूठे इल्ज़ाम लगाने की सच्चाई सामने आ गई। कोर्ट ने संदीप को बाइज्जत रिहा कर दिया और रामलाल को जेल भेज दिया। संदीप जब गाँव लौटा, तो जिन लोगों ने उसका साथ छोड़ा था, वे शर्मिंदा होकर उसके पास आए। “हमसे गलती हुई, संदीप भाई। हमने झूठ पर विश्वास किया।” संदीप ने मुस्कुराते हुए कहा, “गलती करना इंसान का स्वभाव है, लेकिन उसे स्वीकार करना महानता है।” निष्कर्षसंदीप की कहानी ने गाँववालों को सिखाया कि सच्चाई भले ही कठिनाई लाए, लेकिन अंत में जीत उसी की होती है। “सच बोलने की कीमत” जरूर होती है, लेकिन यह कीमत वह हर बार खुशी-खुशी चुकाने को तैयार था।

    सच बोलने की राह कठिन होती है, लेकिन जब अंधकार हटता है, तो सच्चाई की रोशनी सबसे तेज चमकती है।” – Vikash Kumar Hansda

    “क्या आपने कभी सच्चाई के लिए संघर्ष किया है? अपनी कहानी हमारे साथ साझा करें और प्रेरणा बनें।”

    Vikash Kumar Hansda

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