जानिए एक ईमानदार शिक्षक की कहानी, जिसने सच्चाई की राह पर चलते हुए बड़े संघर्षों का सामना किया। “सच बोलने की कीमत” को दर्शाती यह कहानी सच्चाई और साहस का प्रतीक है।
संदीप जेल की सलाखों के पीछे बैठा था। उसकी आँखें खाली दीवार को घूर रही थीं। कुछ ही घंटों में उसे कोर्ट में पेश किया जाना था। एक निर्दोष व्यक्ति, जो केवल सच बोलने के लिए जाना जाता था, आज अपराधी की तरह कैद में था। यह कहानी यहीं से शुरू होती है, जहाँ सच्चाई और झूठ के बीच की लड़ाई ने एक इंसान की पूरी जिंदगी बदल दी।

संदीप एक छोटे से गाँव का स्कूल शिक्षक था। उसे अपनी ईमानदारी और सच्चाई के लिए जाना जाता था। बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ वह उन्हें हमेशा एक सीख देता था। “सच बोलो, चाहे दुनिया तुम्हारे खिलाफ हो जाए। लेकिन यह सीख उसकी जिंदगी को उस मोड़ पर ले आई। जहाँ उसकी सच्चाई ने उसके अपने जीवन को सवालों के घेरे में डाल दिया। गाँव के मुखिया, रामलाल, दिखावे में तो गाँव के भले के लिए काम करते थे। लेकिन उनकी असलियत कोई नहीं जानता था। एक दिन, संदीप ने देखा कि स्कूल के मरम्मत के लिए आए सरकारी पैसे का बड़ा हिस्सा रामलाल ने अपने पास रख लिया। जब पंचायत में यह मुद्दा उठा, तो संदीप ने सबके सामने रामलाल की चोरी का पर्दाफाश कर दिया। “मुखिया जी, आप बच्चों के भविष्य के साथ खेल रहे हैं। यह पैसा स्कूल के लिए था, न कि आपके लिए,” संदीप ने दृढ़ता से कहा।
रामलाल भरी पंचायत में अपमानित हुए। लेकिन उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि वह संदीप को इसका अंजाम भुगतने पर मजबूर करेंगे। संदीप की सच्चाई ने गाँववालों का ध्यान तो खींचा। इस वजह इसका अंजाम भयावह था। अगले ही दिन स्कूल में एक झूठी शिकायत दर्ज कराई गई कि संदीप ने एक छात्र के साथ दुर्व्यवहार किया है। गाँव में अफवाहें फैल गईं। “मैंने कुछ नहीं किया, ये सब झूठ है,” संदीप ने कहा। लेकिन लोगों ने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया। जिन गाँववालों के लिए वह हमेशा खड़ा रहता था, वे अब उसकी तरफ उँगलियाँ उठा रहे थे। संदीप की पत्नी, कविता, इस परिस्थिति से टूट गई थी। “हमने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो हमें ये दिन देखना पड़ रहा है?” उसने रोते हुए कहा।

संदीप ने उसे समझाते हुए कहा, “सच की राह पर चलने वालों को ये सब सहना पड़ता है। लेकिन मैं झूठे इल्ज़ाम को सहन नहीं कर सकता।” गाँव में जाँच शुरू हुई। रामलाल ने अपनी ताकत और पैसे का इस्तेमाल करते हुए सबूतों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। पंचायत ने बिना जाँच-पड़ताल के संदीप को दोषी ठहरा दिया। उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। गाँववालों ने उससे मुँह मोड़ लिया, और अब वह जेल में था। लेकिन जेल की कोठरी में बैठा संदीप टूटने के बजाय पहले से ज्यादा मजबूत महसूस कर रहा था। “सच को दबाया जा सकता है, लेकिन हराया नहीं जा सकता,” वह खुद से कहता। कुछ हफ्तों बाद, राज्य के एक ईमानदार सरकारी अधिकारी ने गाँव का दौरा किया। उन्होंने स्कूल फंड की जाँच की और पाया कि असली दोषी रामलाल था। सारे सबूत इकट्ठे कर उन्होंने कोर्ट में पेश किए।
रामलाल की चोरी और संदीप पर झूठे इल्ज़ाम लगाने की सच्चाई सामने आ गई। कोर्ट ने संदीप को बाइज्जत रिहा कर दिया और रामलाल को जेल भेज दिया। संदीप जब गाँव लौटा, तो जिन लोगों ने उसका साथ छोड़ा था, वे शर्मिंदा होकर उसके पास आए। “हमसे गलती हुई, संदीप भाई। हमने झूठ पर विश्वास किया।” संदीप ने मुस्कुराते हुए कहा, “गलती करना इंसान का स्वभाव है, लेकिन उसे स्वीकार करना महानता है।” निष्कर्षसंदीप की कहानी ने गाँववालों को सिखाया कि सच्चाई भले ही कठिनाई लाए, लेकिन अंत में जीत उसी की होती है। “सच बोलने की कीमत” जरूर होती है, लेकिन यह कीमत वह हर बार खुशी-खुशी चुकाने को तैयार था।

“सच बोलने की राह कठिन होती है, लेकिन जब अंधकार हटता है, तो सच्चाई की रोशनी सबसे तेज चमकती है।” – Vikash Kumar Hansda
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