यहाँ Class 10 History Chapter 1 – “The Rise of Nationalism in Europe” का एक Story Format में पूरा विवरण दिया गया है। इसमें सभी घटनाएं sequence-wise, एक कहानी की तरह समझाई गई हैं ताकि छात्रों को रोचकता के साथ पूरा चैप्टर समझ आ जाए।
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🔰 प्रस्तावना: एक पेंटिंग, जो बदल दे सोच
साल था 1848। फ्रांसीसी कलाकार Frederic Sorrieu ने एक कल्पनात्मक पेंटिंग बनाई — “The Dream of Worldwide Democratic and Social Republics”।
उस चित्र में – दुनिया भर के लोग, अलग-अलग देशों के राष्ट्रीय झंडों के साथ आज़ादी की देवी Liberty के पीछे चल रहे थे। हाथ में जलता हुआ मशाल, सिर पर लाल टोपी — यह सब आज़ादी और समानता का प्रतीक था।
बिलकुल! नीचे Class 10 History Chapter 1 के टॉपिक “The Pact Between Nations” से संबंधित पेंटिंग का विवरण एक पैराग्राफ में दिया गया है — जो परीक्षा और समझ दोनों के लिए उपयुक्त है:
“The Pact Between Nations” – पेंटिंग का विवरण:
यह एक काल्पनिक पेंटिंग थी जिसे फ्रांसीसी कलाकार Frédéric Sorrieu ने 1848 में बनाया था। इस पेंटिंग में यूरोप और दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों को एक साथ मार्च करते हुए दिखाया गया है, मानो वे “राष्ट्रवाद” के विचार को अपनाकर एक नई दुनिया की ओर बढ़ रहे हों। हर राष्ट्र अपने-अपने राष्ट्रीय झंडों के साथ चित्रित है, जैसे फ्रांस, जर्मनी, इटली, अमेरिका आदि। सबसे आगे फ्रांस है, जो क्रांति का नेतृत्व करता हुआ प्रतीकात्मक रूप से दिखाया गया है। इन झंडों को लहराते हुए लोगों की कतारें इस बात को दर्शाती हैं कि राष्ट्र अब राजाओं के अधीन नहीं, बल्कि लोगों की इच्छा से बनेंगे। पेंटिंग के ऊपर स्वर्ग जैसा दृश्य है, जहाँ स्वर्गदूत और देवी-देवता लोकतंत्र, स्वतंत्रता और भाईचारे का आशीर्वाद दे रहे हैं। यह चित्रण यह संदेश देता है कि राष्ट्रों को आपस में मिलकर, शांति और समानता के सिद्धांतों पर आधारित एक नई दुनिया बनानी चाहिए — यही है “The Pact Between Nations” की कल्पना।
तभी एक सवाल उठा – कब और कैसे लोगों में राष्ट्रवाद आया? क्या पहले ऐसा नहीं था?
🏰 I. यूरोप का पुराना नक्शा – जब राष्ट्र नहीं थे
आज के जैसे देश (जैसे कि जर्मनी, इटली, फ्रांस) उस समय “राष्ट्र” नहीं थे। वे राजशाही शासन वाले राज्य थे, जहाँ एक राजा पूरे क्षेत्र पर शासन करता था, लेकिन वहां की भाषा, संस्कृति, कानून और मुद्राएं अलग-अलग थीं।
उदाहरण: जर्मनी 39 छोटे राज्यों में बँटा था। इटली कई डचियों और पॉप राज्यों में बँटा था।
लोगों की कोई राष्ट्रीय पहचान नहीं थी। वे राजा की प्रजा थे, देश के नागरिक नहीं।
🔥 II. फ्रांसीसी क्रांति – राष्ट्रवाद का बीज (1789)
अब कहानी ले जाती है 1789 की फ्रांस की क्रांति की ओर। यहाँ राष्ट्रीयता का पहला बीज बोया गया।
🎯 क्रांति के बदलाव:
- Absolute monarchy की जगह आया संवैधानिक शासन
- राजा अब ईश्वर का प्रतिनिधि नहीं, कानून के अधीन था
- लोगों को मिला:
- Speech और Expression की आज़ादी
- नागरिक अधिकार
- Equality before law
- अब “Subject of the king” नहीं, बल्कि Citizen of the Nation बने।
1789 की फ्रांसीसी क्रांति ने फ्रांस ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को हिला कर रख दिया। इस क्रांति के बाद समाज में बराबरी, स्वतंत्रता और भाईचारे के सिद्धांतों को महत्व मिला। राजशाही की समाप्ति के साथ ही पुरानी विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग-व्यवस्था (क्लर्जी और नोबिलिटी) को खत्म कर दिया गया और अब सभी नागरिक कानून के सामने समान माने गए। फ्यूडल सिस्टम को खत्म किया गया, किसानों को ज़मींदारों की गुलामी से मुक्ति मिली। नेपोलियन के दौर में इन विचारों को यूरोप के अन्य हिस्सों में भी फैलाया गया। क्रांति के बाद राष्ट्रवाद और लोकतंत्र की अवधारणाओं ने जन्म लिया और नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने की प्रेरणा मिली। कुल मिलाकर, यह क्रांति सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक दृष्टि से यूरोप के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई।
📢 राष्ट्रीयता को बढ़ावा देने वाले कदम:
- एक जैसी राष्ट्रीय भाषा (French)
- एक ही झंडा, Hymn, अलंकरण – राष्ट्र का प्रतीक
- जनता की सेवा को सर्वोच्च धर्म माना गया
लेकिन… यह बदलाव स्थायी नहीं रहा।
⚔ III. नेपोलियन आया – और बदला खेल (1804)
1799 में सत्ता में आया Napoleon Bonaparte। उसने खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित किया। उसने यूरोप के कई हिस्सों को जीत लिया और Code Napoleon (1804) लागू किया।
📝 नेपोलियन के सुधार:
- Feudal system खत्म किया
- सबके लिए एक कानून
- संपत्ति का अधिकार
- व्यापार के लिए 一 मापदंड और मुद्रा
परंतु… उसके साथ सेना और कर वसूली भी आई। लोग आज़ादी से ज्यादा फ्रांस की दखलंदाज़ी से परेशान होने लगे।
नेपोलियन से फ्रांस के लोग क्यों नफरत करने लगे:
शुरुआत में नेपोलियन को फ्रांस के लोग एक महान नेता और क्रांति के विचारों का रक्षक मानते थे, लेकिन जैसे-जैसे उसका शासन आगे बढ़ा, वह धीरे-धीरे तानाशाही की ओर बढ़ने लगा। उसने खुद को सम्राट घोषित कर दिया, जिससे लोगों को लगा कि वह उन्हीं राजाओं की तरह बन गया है जिनके खिलाफ क्रांति हुई थी। उसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल दिया, प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी और अपने विरोधियों को जेल में डालना शुरू कर दिया। इसके अलावा, लगातार युद्धों ने फ्रांस की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया, और हजारों युवाओं को सेना में जबरन भर्ती किया गया, जिससे लोगों में गुस्सा बढ़ा। अंततः नेपोलियन की शक्ति की भूख और सैन्य विस्तारवाद ने उसे उसी शासक वर्ग में ला खड़ा किया जिससे फ्रांस की जनता ने आज़ादी पाने के लिए संघर्ष किया था — और इसलिए लोग उससे नफरत करने लगे।
अब राष्ट्रवाद एक विद्रोह और संघर्ष का रूप लेने लगा।
🏫 IV. एक नया वर्ग – मिडिल क्लास और उनकी सोच
अब कहानी पहुँचती है उन बुद्धिजीवी मध्यवर्ग तक — वकील, डॉक्टर, प्रोफेसर, व्यापारी — जिन्होंने शिक्षा के ज़रिए राष्ट्र की कल्पना शुरू की।
उनका सपना था – एक ऐसा देश:
- जहाँ समानता हो
- नागरिकों के अधिकार हों
- और राष्ट्र राजा नहीं, जनता की इच्छा से चले
इन विचारों ने जन्म दिया कई क्रांतिकारियों को…
🚩 V. Mazzini और Young Europe – राष्ट्रवाद की चिंगारी
👤 Giuseppe Mazzini – इटली का क्रांतिकारी
- मानता था कि राष्ट्र ईश्वर की रचना है
- राजा नहीं, जनता को सत्ता मिलनी चाहिए
- बनाया संगठन Young Italy और Young Europe
उसकी सोच थी: राजा हटाओ, राष्ट्र बनाओ।
🏫 Giuseppe Mazzini का परिचय और पृष्ठभूमि:
Giuseppe Mazzini एक महान इतालवी राष्ट्रवादी क्रांतिकारी थे, जिनका जन्म 1807 में इटली के जिनोआ शहर में हुआ था। वे एक बुद्धिजीवी, लेखक और राजनीतिक विचारक थे, जिन्होंने यूरोप में राष्ट्रवाद और लोकतंत्र की भावना को एक नई दिशा दी। उन्होंने यह विश्वास किया कि राष्ट्र ईश्वर की इच्छा से बनते हैं और प्रत्येक राष्ट्र को एक स्वतंत्र गणराज्य होना चाहिए। उनका मानना था कि राजशाही और साम्राज्यवादी शासन, इंसान की आज़ादी और बराबरी के खिलाफ हैं।
🏛️ युवा क्रांतिकारी संगठन – ‘Young Italy’ और ‘Young Europe’:
Mazzini ने सबसे पहले युवाओं को जागरूक करने और संगठित करने के लिए 1831 में ‘Young Italy’ नामक संगठन की स्थापना की। यह एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन था, जिसका उद्देश्य इटली को विदेशी सत्ता (जैसे ऑस्ट्रिया) से मुक्त कराकर उसे एक संयुक्त गणराज्य (United Republic) बनाना था। इसके बाद 1834 में उन्होंने यूरोप के अन्य देशों में राष्ट्रवादी भावनाओं को जगाने के लिए ‘Young Europe’ की शुरुआत की। इसका उद्देश्य पूरे यूरोप में राष्ट्रों को एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक रूप में स्थापित करना था।
⚔ राजतंत्र और साम्राज्यवाद का विरोध:
Mazzini ने ज़ोर दिया कि राजाओं और राजतंत्रों के अंत के बिना किसी भी राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है। वे ऑस्ट्रिया के इटली पर अधिकार, जर्मन राजकुमारों की आपसी राजनीति और फ्रांसीसी सम्राट के विस्तारवादी रवैये का खुलकर विरोध करते थे। उनका मानना था कि केवल जनता की शक्ति से ही एक सच्चे राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। इसीलिए उन्होंने जनता को राजनीतिक रूप से जागरूक करने का कार्य किया।
🌍 Mazzini का प्रभाव पूरे यूरोप पर:
Giuseppe Mazzini केवल इटली के ही क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि उनके विचारों ने पूरे यूरोप के युवाओं और क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। उनके संगठन ‘Young Europe’ में पोलैंड, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और जर्मनी के राष्ट्रवादी युवा शामिल हुए। Mazzini की सोच यह थी कि अगर यूरोप के राष्ट्रवादी मिलकर एकजुट हो जाएं, तो राजतंत्र और साम्राज्यवाद को जड़ से खत्म किया जा सकता है।
👑 राजशाही सरकारों की नजरों में खतरा:
Mazzini की बढ़ती लोकप्रियता और उनके विचारों के प्रभाव को देखकर यूरोप की राजशाही सरकारें उन्हें एक खतरनाक व्यक्ति मानने लगी थीं। ऑस्ट्रिया के तत्कालीन चांसलर Metternich ने उन्हें खुले तौर पर “Europe’s Most Dangerous Enemy” कहा। राजतंत्रों को डर था कि Mazzini के विचारों से जनता जागरूक हो जाएगी और उनके साम्राज्य गिर जाएंगे।
🏁 Giuseppe Mazzini की विरासत:
हालाँकि Mazzini स्वयं अपने जीवनकाल में इटली को एकीकृत नहीं कर पाए, लेकिन उनके विचारों और आंदोलनों ने इटली की एकता की नींव रखी। आगे चलकर Giuseppe Garibaldi और Count Cavour जैसे नेताओं ने Mazzini के विचारों को आगे बढ़ाकर इटली को एक संयुक्त राष्ट्र बना दिया। Mazzini का योगदान आज भी राष्ट्रवाद और लोकतंत्र के इतिहास में एक प्रेरणास्रोत के रूप में याद किया जाता है।
यूरोप की सरकारें उससे डरने लगीं। पर युवाओं को उसकी बातों ने प्रेरित किया।
🌍 VI. 1830 और 1848 की क्रांतियाँ – जब जनता उठ खड़ी हुई
🔥 1830 की क्रांति:
- फ्रांस में Bourbon राजा हटे
- Louis Philippe बना राजा — “जनता का राजा”
- बेल्जियम ने खुद को नीदरलैंड से अलग किया
💥 1848 की क्रांति:
- फ्रांस में फिर विद्रोह – अब राजशाही को पूरी तरह खत्म किया गया
- माँग थी:
- Universal suffrage
- कामगारों के अधिकार
साथ ही:
- जर्मन और इटालियन राज्यों में यूनिटी की माँग
- हंगरी और बोहेमिया के स्लाव लोगों ने स्वतंत्रता की माँग की
हालाँकि इन विद्रोहों को राजशाही ने कुचल दिया, पर राष्ट्रवाद का बीज और गहरा हो गया।
बिलकुल! नीचे 1830 और 1848 की क्रांतियों का विवरण एक कहानी शैली (story style) में क्रमबद्ध पैराग्राफ़्स के रूप में दिया गया है, ताकि छात्र इसे रोचक ढंग से समझ सकें और याद रख सकें:
🔥 1830 की क्रांति – चिंगारी जो फैली पूरे यूरोप में
साल था 1830। फ्रांस में चार्ल्स X ने एक बार फिर से राजशाही को मजबूत करने की कोशिश की। उसने संसद भंग कर दी, प्रेस की आज़ादी छीन ली और चुनाव अधिकार सीमित कर दिए। लेकिन जनता अब वो पुरानी जनता नहीं रही थी — फ्रांसीसी क्रांति के बीज अब फूट चुके थे। पेरिस की सड़कों पर फिर से जनता उतरी, और देखते ही देखते विद्रोह की लहर दौड़ गई। चार्ल्स X को भागना पड़ा, और लुई फिलिप को ‘जनता का राजा’ घोषित किया गया।
फ्रांस की इस क्रांति की चिंगारी पूरे यूरोप में फैल गई। बेल्जियम, जो उस समय नीदरलैंड का हिस्सा था, उसने भी 1830 में विद्रोह कर दिया और एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। इटली और जर्मनी में भी छोटे-छोटे राजाओं और विदेशी शासन के खिलाफ बगावतें हुईं। लोगों की आंखों में अब एक सपना था — अपना राष्ट्र, अपनी सरकार।
💥 1848 की क्रांति – जब सपना बना तूफ़ान
सिर्फ 18 साल बाद, साल आया 1848, जिसे यूरोप में “क्रांति का साल” कहा जाता है। इस बार विद्रोह और आंदोलन सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक भी थे।
खासकर मध्यम वर्ग और किसान-श्रमिक वर्ग में गुस्सा था। एक तरफ नौजवान राष्ट्र चाहते थे, दूसरी तरफ गरीब और मजदूर रोटी, रोजगार और समानता की मांग कर रहे थे।
फ्रांस में एक बार फिर क्रांति हुई — लुई फिलिप की सरकार को गिरा दिया गया और फ्रांस में गणराज्य की घोषणा कर दी गई। जर्मनी में Frankfurt Parliament बुलाई गई, जिसमें पूरे जर्मन राज्यों से प्रतिनिधि आए और उन्होंने एकता और संविधान की मांग रखी। हालाँकि यह प्रयास विफल रहा क्योंकि राजकुमारों ने इसे मानने से इनकार कर दिया।
इटली में भी विद्रोह हुआ — Giuseppe Mazzini और अन्य राष्ट्रवादियों ने कई हिस्सों में विद्रोह किया, लेकिन ऑस्ट्रियाई सेनाओं ने इन्हें कुचल दिया। हंगरी और चेक गणराज्य में भी लोगों ने ऑस्ट्रिया से आज़ादी की मांग की।
⚔️ परिणाम – उम्मीदें टूटीं लेकिन बीज बो दिए गए
1848 की ये क्रांतियाँ ज्यादातर जगहों पर असफल रहीं। राजशाही ने फिर से अपनी ताकत जमा ली, आंदोलन कुचल दिए गए, और जनता को फिर से चुप करा दिया गया। लेकिन यह असफलता स्थायी नहीं थी। इन क्रांतियों ने पूरे यूरोप में राष्ट्रवाद और लोकतंत्र के बीज बो दिए, जो आगे चलकर इटली और जर्मनी की एकता, और कई देशों में लोकतांत्रिक शासन की स्थापना का आधार बने।
🛡 VII. राष्ट्र निर्माण – तलवार, खून और समझौते से
अब कहानी पहुँचती है राष्ट्रों के वास्तविक निर्माण तक – ख़ासकर जर्मनी और इटली में।
जर्मनी का एकीकरण: (Unification of Germany)
- नेतृत्व में था Otto von Bismarck (Prussian Chancellor)
- 1864 – डेनमार्क से युद्ध
- 1866 – ऑस्ट्रिया से युद्ध
- 1870 – फ्रांस से युद्ध
- 1871 – Versailles में जर्मन साम्राज्य की घोषणा
राजा विलियम-I बने Kaiser।
जर्मनी का निर्माण “iron and blood” से हुआ।
🏰 “एक राजा, एक सपना – जर्मनी की कहानी…” (Short story of Unification of Germany)
यूरोप के बीचों-बीच एक विशाल ज़मीन थी जिसे लोग “जर्मन क्षेत्र” कहते थे। लेकिन वहाँ कोई एक राजा नहीं था, कोई एक झंडा नहीं था। बल्कि वहाँ 39 छोटे-छोटे राज्य थे — जैसे हर राज्य अपनी ही दुनिया में जी रहा हो। कोई ऑस्ट्रिया के अधीन था, कोई प्रशिया के, और कोई अपनी ही सत्ता चला रहा था।
लोगों का सपना था — “काश हम सब एक होते! हमारा भी एक ही झंडा होता, एक ही सरकार होती… और हम गर्व से कहते, हम जर्मन हैं!”
लेकिन ये सपना अधूरा था… जब तक कि एक तेज दिमाग और लोहे जैसे इरादों वाला इंसान इस धरती पर नहीं आया।
उसका नाम था ओटो वॉन बिस्मार्क — एक चालाक, धैर्यवान और साहसी प्रशियाई मंत्री।
वो कहता था, “बोलने से देश नहीं बनते… देश बनते हैं तलवार और हिम्मत से!”
और फिर शुरू हुई एक जबरदस्त योजना — एकीकरण की योजना। बिस्मार्क ने सोचा, “अगर मुझे इन 39 बिखरे राज्यों को एक करना है, तो मुझे तीन युद्ध जीतने होंगे…”
पहला युद्ध उसने डेनमार्क से लड़ा — दो छोटे राज्य जीत लिए: Schleswig और Holstein।
दूसरे युद्ध में उसने ऑस्ट्रिया को हराया — और जर्मनी से उसका असर खत्म कर दिया।
तीसरे युद्ध में उसने फ्रांस को हराया — और इस युद्ध ने पूरे जर्मन लोगों को एक झंडे के नीचे ला खड़ा किया।
और फिर, 1871 का साल आया…
फ्रांस की राजधानी पेरिस के पास Versailles के महल में, सारे जर्मन राजा इकट्ठा हुए। वहाँ प्रशिया के राजा विलियम I को “German Emperor” घोषित किया गया।
लोगों की आँखों में आँसू थे — ये आँसू दुःख के नहीं, गर्व के थे।
अब वो कह सकते थे — हम एक हैं… हम जर्मनी हैं।
इस तरह एक इंसान की सोच, उसकी नीति, और लोगों के दिलों में छिपे राष्ट्रवाद ने एक पूरे देश को जन्म दिया — जर्मनी, जो आने वाले समय में एक शक्तिशाली राष्ट्र बना।
ओटो वॉन बिस्मार्क को आज भी याद किया जाता है — “लौह चांसलर” (Iron Chancellor) के नाम से।
🏰 बिखरा हुआ जर्मनी (Detailed Explained – Unification of Germany)
19वीं शताब्दी की शुरुआत में जर्मनी एक एकीकृत देश नहीं था। यह लगभग 39 छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था, जिन्हें German Confederation कहा जाता था। इन राज्यों में सबसे शक्तिशाली राज्य था प्रशिया (Prussia)। जर्मन लोगों में एक राष्ट्र बनने की इच्छा थी, लेकिन राजनीतिक रूप से वे अलग-अलग शासकों के अधीन थे और उनमें एकता का अभाव था।
राष्ट्रवाद और Frankfurt Parliament का प्रयास
1848 की क्रांति के दौरान, जर्मन राष्ट्रवादियों ने एक बड़ा कदम उठाया। उन्होंने Frankfurt Parliament में सभी जर्मन राज्यों के प्रतिनिधियों को बुलाया और एक संवैधानिक राष्ट्र बनाने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने काइज़र विलियम IV को जर्मनी का राजा बनने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उसने यह कहकर इंकार कर दिया कि वह “जनता के द्वारा दिया गया ताज” स्वीकार नहीं करेगा। यह प्रयास विफल रहा, लेकिन इसने राष्ट्रीय एकता की भावना को और मजबूत कर दिया।
⚔Bismarck का नेतृत्व – लौह और रक्त की नीति
जर्मनी के एकीकरण की असली शुरुआत हुई Prussia के प्रधानमंत्री ओटो वॉन बिस्मार्क (Otto von Bismarck) के नेतृत्व में। उन्होंने कहा —
“Not by speeches and majority resolutions, but by blood and iron.”
अर्थात – भाषणों और प्रस्तावों से नहीं, बल्कि लौह और रक्त (युद्ध) के माध्यम से जर्मनी को एक किया जाएगा।
🔥 तीन निर्णायक युद्ध – एकीकरण की सीढ़ियाँ
बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के लिए तीन युद्धों की रणनीति अपनाई:
- 1864 – डेनमार्क के खिलाफ युद्ध:
बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के साथ मिलकर डेनमार्क पर हमला किया और Schleswig और Holstein नामक दो राज्यों को जीत लिया। इससे जर्मन राज्यों की एकता की नींव पड़ी। - 1866 – ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध (Austro-Prussian War):
इस युद्ध में प्रशिया ने ऑस्ट्रिया को हराकर उसे German Confederation से बाहर कर दिया। इसके बाद उत्तर जर्मन राज्यों को मिलाकर North German Confederation बनाई गई, जो अब प्रशिया के नेतृत्व में था। - 1870 – फ्रांस के खिलाफ युद्ध (Franco-Prussian War):
बिस्मार्क ने फ्रांस को युद्ध के लिए उकसाया और फिर जबरदस्त तरीके से हराया। इस जीत से दक्षिण जर्मन राज्य भी प्रशिया के साथ जुड़ गए। फ्रांस की हार ने जर्मन राष्ट्रवादियों को एकजुट कर दिया।
👑 1871 – एकीकृत जर्मन साम्राज्य की घोषणा
1871 में, फ्रांस की राजधानी पेरिस के बाहर स्थित वर्साय महल में, सभी जर्मन राज्यों के शासकों ने काइज़र विलियम I को ‘German Emperor’ घोषित किया। इसी के साथ जर्मनी एक एकीकृत राष्ट्र बन गया।
निष्कर्ष – बिस्मार्क की रणनीति और राष्ट्रवाद की जीत
जर्मनी का एकीकरण युद्ध, रणनीति और राष्ट्रवाद के मेल से हुआ। ओटो वॉन बिस्मार्क की राजनीतिक चतुराई और सैन्य नीति ने उसे संभव बनाया। यह एकीकरण यूरोप की राजनीति को बदल देने वाली घटना थी, जिसने आने वाले समय में जर्मनी को एक शक्तिशाली साम्राज्य बना दिया।
इटली का एकीकरण: (Unification of Italy)
- मुख्य नेता: Giuseppe Garibaldi (लाल कमीज़ वाला सैनिक)
- उत्तर में काम किया Count Cavour ने
- 1861 में इटली एकजुट हुआ
- 1870 में रोम भी शामिल हुआ और Rome बनी राजधानी
इटली का विभाजन – कौन कहां राज करता था?
19वीं सदी की शुरुआत में इटली एक राष्ट्र नहीं था, बल्कि कई हिस्सों में राजनीतिक रूप से बंटा हुआ था:
- उत्तरी इटली (Northern Italy) – इस पर ऑस्ट्रिया का सीधा नियंत्रण था। खासकर लोम्बार्डी और वेनिशिया जैसे क्षेत्र ऑस्ट्रियन साम्राज्य के अधीन थे।
- मध्य इटली (Central Italy) – यहाँ पोप (Pope) का राज था, जिसे “Papal States” कहते थे। यानी यहाँ धर्म के नाम पर शासन होता था और यह क्षेत्र सीधे वेटिकन के अधीन था।
- दक्षिणी इटली (Southern Italy) – यहाँ Bourbon राजवंश का शासन था, जो स्पेन के राजा से जुड़ा हुआ था।
- Piedmont-Sardinia (पश्चिमोत्तर हिस्सा) – यह एकमात्र स्वतंत्र राज्य था, जहां राजा Victor Emmanuel II और उनके प्रधानमंत्री Count Cavour राज करते थे।
⚔ Unification की प्रक्रिया
Count Cavour को पता था कि इटली को एक करने के लिए सबसे पहले ऑस्ट्रिया को हटाना पड़ेगा।
इसलिए उसने फ्रांस (Napoleon III) से गुप्त समझौता किया और 1859 में ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध लड़ा।
इसमें ऑस्ट्रिया को हराया गया और उत्तरी इटली के कई हिस्से Piedmont में शामिल हो गए।
इस जीत से उत्साहित होकर मध्य इटली (जहाँ पोप का शासन था) में भी लोगों ने विद्रोह कर दिया।
अब चूँकि फ्रांस पोप को सुरक्षा दे रहा था, Cavour ने सावधानी से कूटनीति अपनाई। लेकिन जैसे ही जनता ने आंदोलन शुरू किया, पोप के पास कोई विकल्प नहीं बचा और मध्य इटली के कई हिस्से खुद-ब-खुद Piedmont में मिल गए।
अब बारी थी दक्षिण की — यानी सिसिली और नेपल्स, जो Bourbon राजा के अधीन थे।
यहाँ Giuseppe Garibaldi ने अपने “लाल कोटधारी” साथियों (Red Shirts) के साथ हमला बोला और जनता के समर्थन से Bourbon राजवंश को हरा दिया।
लेकिन Garibaldi ने यह क्षेत्र खुद अपने पास रखने के बजाय सीधे जाकर Victor Emmanuel II को सौंप दिया।
अब केवल Rome ही बचा था, जो अभी भी पोप के अधीन था और फ्रांस की सेनाएं उसकी सुरक्षा में तैनात थीं।
लेकिन 1870 में जब फ्रांस ने प्रशिया (जर्मनी) से युद्ध शुरू किया, तो उन्हें अपनी सेना वापस बुलानी पड़ी।
यह सुनहरा मौका था — और इटली की सेना ने Rome पर कब्जा कर लिया।
Rome अब इटली की राजधानी बना दिया गया।
✅ निष्कर्ष – एकजुट इटली
- 1861 में Victor Emmanuel II को “King of United Italy” घोषित किया गया।
- 1870 तक Rome भी शामिल हो गया, और Italy एक पूर्ण राष्ट्र बन गया।
- Austria को युद्ध में हराया गया,
- Bourbon राजा को Garibaldi ने हरा दिया,
- और Pope ने अंततः डर और दबाव में Rome छोड़ दिया, जब फ्रांस ने उसे सुरक्षा देना बंद किया।
🌍 VIII. अन्य देशों में राष्ट्रवाद
- ब्रिटेन में कोई क्रांति नहीं, बल्कि धीरे-धीरे संसदीय कानूनों और सांस्कृतिक एकता से राष्ट्र बना
- परंतु यहाँ Irish लोगों की पहचान को दबा दिया गया
🎨 IX. राष्ट्र की कल्पना – झंडा, स्त्री और नायक
अब राष्ट्र को एक मानवीय रूप में दिखाया जाने लगा।
- राष्ट्र को स्त्री के रूप में – जैसे:
- फ्रांस में Marianne
- जर्मनी में Germania
- उन्होंने पहन रखी थी:
- लाल टोपी (आज़ादी)
- तलवार (सत्ता)
- जैतून की माला (शांति)
नक्शों, झंडों, गानों और मूर्तियों से राष्ट्र की “कल्पना” को जन-जन तक पहुंचाया गया।
💣 X. राष्ट्रवाद का खतरनाक रूप
यही राष्ट्रवाद आगे चलकर दूसरे देशों की नफरत और उपनिवेशवाद का कारण भी बना।
यूरोप के बड़े राष्ट्र – जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी – अब राष्ट्रवाद के नाम पर दूसरों पर शासन करने लगे।
यही भावना आगे चलकर बनी WW-I (1914) की वजह।
निष्कर्ष: राष्ट्रवाद – वरदान या अभिशाप?
तो दोस्तों, राष्ट्रवाद एक ऐसी ज्वाला थी जो लोगों को आज़ादी दिला सकती थी – लेकिन वही अगर नियंत्रण से बाहर हो, तो बन जाती है युद्ध की आग।
Class 10 के इस अध्याय ने हमें यह सिखाया कि:
“राष्ट्र सिर्फ नक्शे पर बने हुए देश नहीं होते – वे एक सोच, एक संघर्ष और एक कल्पना से बनते हैं।”

Exactly !!!!
The French Revolution proves how strong ordinary people can be when they stand together for their rights…No throne or crown…
Hm..😐
that’s the situation of students nowadays. Didn’t you heard the news that a girl died after her father beaten her…
[…] Vikash Kumar HansdaClick Here for PART 1 […]
Exactly !!!!
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