इस दुनिया में पैसे के बिना कोई कुछ भी सोचने-समझने की स्थिति में नहीं होता। एक पल के लिए सोचकर देखिए, बिना पैसे के जीवन में कुछ भी संभव नहीं लगता। यह केवल आज की बात नहीं है; धन का लेन-देन प्राचीन काल से चला आ रहा है, हालांकि उस समय इसे “पैसा” नहीं कहा जाता था। प्राचीन काल में लोग “लो और दो” की प्रक्रिया से काम करते थे, जिसे हम “बार्टर सिस्टम” के नाम से जानते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि धन का महत्व हर युग में मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है।
दसवां अंश (tithes) से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: दसवां अंश (tithes) क्या है?
प्रश्न 2: मुझे अपनी आय का कौन-सा हिस्सा दसवां अंश में देना चाहिए?
प्रश्न 3: दसवां अंश किसे दिया जाना चाहिए?
प्रश्न 4: क्या दसवां अंश देना अनिवार्य है?
प्रश्न 5: दसवां अंश देने के क्या लाभ हैं?
प्रश्न 6: क्या मैं दसवां अंश देने के लिए नकद के अलावा अन्य तरीकों का उपयोग कर सकता हूँ?
प्रश्न 7: यदि मैं दसवां अंश न दूँ, तो क्या होगा?
तमाम प्रश्नों के उत्तर आपको यही मिलेंगे।
दसवां अंश देना न केवल प्रभु के प्रति आभार व्यक्त करने का साधन है, बल्कि यह आत्मिक और आर्थिक उन्नति की कुंजी भी है। विश्वास के साथ इसे अपने जीवन में अपनाएं।
पैसा, हर एक के जीवन में उनत्ति या प्रगति का कारण होता है। सोच के देखिए आपके घर की हर एक जरुरत क्या बिना पैसा के पूरा हुआ है, जवाब है – नहीं। आप सोच रहे होंगे मै ये क्यों बोल रहा हूँ। मसीह के चेले होने के नाते हमारी आर्थिक धन ही हमारे जीवन का सफल या असफल होने का वजह है। अगर आपका दुःख दर्द वर्षो से खत्म नहीं हो रहा है, बना बनाया हुआ काम बिगड़ जाता है, कुछ अच्छा करने जाओ तो बुरा ही हो जाता है, पैसा बचाना चाहो तो पैसा आते ही हाथ से गायब हो जाता है, आपके बहुत परिश्रम करने पर भी कोई उन्नति नहीं दिख रही, प्रार्थना करते हो, हमेशा चर्च जाते हो – फिर भी ना ख़ुश हो……इसी तरह आपके जीवन में कई परेशानी देखने को मिलता होगा जिसका एक मात्र कारण बस – ” पैसा ” है। अब आप सोच रहे होंगे की ऐसे कैसे एक सांसारिक वस्तु आपके आत्मिक जीवन को इतना बड़ा प्रभाव डाल सकता है।

क्या आप प्रभु के सच्चे आराधक है? परमेश्वर हमसे एक सच्ची आराधना की चाह करते है क्योंकि की बाइबिल कहती है सच्चे आराधक वही है जो परमेश्वर की आराधना पुरे तन – मन – धन से करते है। हम प्रभु की आराधना तन और मन से तो करते है पर क्या सही में हम धन से भी उसकी आराधना करते है। अगर नहीं तो फिर हम सब सच्चे आराधक नहीं है और अगर नहीं है अब हमें सच्चे आराधना करने वाले होना चाहिए। अब सवाल है – कैसे? जिसका एक मात्र जवाब है – दसमांश। इसका क्या अर्थ है? आपके धन का दसमां भाग प्रभु का है – आपके कमाई का पूर्ण भाग में दसमां अंश ईश्वर का है, आपका नहीं। यही अंश प्रभु को देना एक दसमांश कहलाता है। अगर आपका वेतन 10,000 रूपये है तो उसमे से 1000 रुपये आपका नहीं बल्कि प्रभु का है। आपको दस बोरी गेहूँ मिलता है या 50 किलो आलू मिलता है तब उसमे से 1 बोरी गेहूँ और 5 किलो आलू आपका नहीं है, परमेश्वर का है।
परमेश्वर को दिया जाने वाला अंश यदि हम नहीं देते है और अपने पास रखते है तो परमेश्वर उसे चोरी के सामान देखते है। दसवाँ अंश नहीं देना बैंक के घुसकर वहां का सारा धन लूट लेने के बराबर जैसा है।परमेश्वर का वचन – मलाकी 3: 7 – 9 में ऐसे लोगो को ” श्रपित ” का दर्जा देते है। प्रभु के अंश को ना देना अपने जीवन में परेशानी को नेवता देने जैसा होता है। अगर आप व्यवस्थाविवरण 28 : 15 – 68 में पढ़ेंगे तो पायेंगे की दुनियाँ के तमाम प्रकार के कष्ट और दुःख आपके काल को एक श्राप जैसा मालूम कराएगा। इसका सीधा – सीधा मतलब है की हमारे पास जो है वो हमारा है ही नहीं – जो कुछ धन – सम्पति हमारे पास है उन सबका वास्तविक मालिक परमेश्वर है केवल इतना ही नहीं यह सब मालिक की मन के अनुसार इस्तेमाल करने के लिए ही हमें सौंपा गया है। हम मालिक नहीं हम बस भण्डारी हैं। इन सबका ज्ञान हमें प्रभु के वाचन से मिलता है ” देख, जो कुछ सारी धरती पर है सो मेरा है ” (अय्यूब : 41 : 11 ) इस तरह के और भी वचन है जो हमें सिखाते है की हमारी सारी वस्तु जो कहने को बस हमारे है पर हम तो एक भण्डारी है – आपका वाहन, घर, बैंक में जमा राशि, वस्त्र, झाड़ू, फ्रिज, साईकल, चूल्हा, बच्चे, पत्नी, पालतू जानवर, आपका खेत, सब्जी काटने वाला चाकू इत्यादि जो कुछ आप अपना समझते या कहते है – याद रखे की आप इनके मालिक नहीं है। इन सबके आप बस भण्डारी है।
भण्डारी से तात्पर्य है की आप रखवाला है, जैसे एक बैंक मैनेजर के पास करोड़ों रूपये है पर मैनेजर इन पैसों को अपने काम के लिए खर्च नहीं कर सकता है। वह बस उन पैसों का रखवाली करता है। परमेश्वर का हमसे दसमांश देने को कहने के पीछे एक व्यवहारिक कारण है साथ ही साथ हमें यह समझना भी है की यह हमारे आत्मिक और आर्थिक आशीष का माध्यम है।

प्रभु का वचन कहता है – परमेश्वर भला है। जो कुछ हमें मिल रहा है उन सबका दसवां अंश देना यह आज्ञा मनुष्य ने नहीं बल्कि परमेश्वर ने दिया है। ” और उसकी आज्ञा कठिन नहीं है ” (1यहुन्ना 5:3)अब तक आपके दिमाग में ये आ गयी होंगी की हमारे जीवन में दसमांश का महत्त्व क्या है। आइये इसे विस्तार से प्रभु के वचनों के साथ देखते है की दसमांश का उदेश्य क्या है।
- हम परमेश्वर का आराधना और महिमा करते है। परमेश्वर का वचन कहता है की दसमांश देने के द्वारा हम उनकी आराधना और महिमा करते है। ( नीतिवचन 3:9 ) – ” अपनी सम्पति के द्वारा और अपनी भूमि की सारी पहली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना। “ परमेश्वर ने हमारे जीवन में जो उपकार भलाई और आशीष को दिया है उनके लिए धन्यावाद देने का प्रवर्ती – दसमांश देना।
- परमेश्वर के राज्य की बढ़ोतरी होना।
प्रेरितों के काम 13:1-2 में हम पढ़ते है की पवित्र आत्मा अन्ताकिया की कलीसिया से कहते की पौलुस और बरनबास को परमेश्वर के बुलाहट के अनुसार सेवकाई के लिए भेजा। इसका अर्थ है की केवल प्रार्थना और हाथ रखना ही नहीं बल्कि उनको आर्थिक तौर से भी संभालने की जिम्मेदारी, कलीसिया की है। ” और यदि भेजे न जाए तो क्योंकर प्रचार करें। ” (रोमियो 10 : 13 – 17 ) इस प्रश्न का पूछे जाने का उदेश्य ही यही है की कलीसिया परमेश्वर के राज्य के बढ़ोतरी के लिए धन सहयोग दें। उसके लिए स्थानीय कलीसिया के विश्वासी का दसमांश और भेंट देना जरुरी है।
अनाथ एवं विधवाओं की मदद, असहाय बच्चों को शिक्षा देना, समूह में कलेश झेलने वालों के बीच राहत कार्य करना आदि सैकड़ो सामाजिक सेवा करना एक कलीसिया का जिम्मेदारी है। ऐसे कार्य के लिए बहुत धन की जरुरत होती है। आप और हम जब तक कलीसिया को दसवां अंश और भेंट नहीं देंगे तब तक ये कार्य कलीसिया प्रारम्भ नहीं कर सकती। और अगर हम ये नहीं करते तो आप ये जान ले की आप प्रभु की राज्य की बढ़ोतरी के लिए बाधा डाल रहे है। लेकिन उनकी राज्य के बढ़ोतरी के प्रभु अपने वचन – मत्ती 6:19-21 में कहते है की ऐसे देनेवालों के लिए स्वर्ग में बहुत से प्रतिफल है। यह केवल कलीसिया की नहीं, बल्कि हमारे सामूहिक प्रयासों, और व्यक्तिगत सोच और कार्यों का मामला है, ताकि हम आपस में एकजुट होकर और सत्य के मार्ग पर चलकर, अपने अंदर और समाज में परिवर्तन ला सकें। यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण दायित्व है जिसे हमें समझना और निभाना चाहिए। कलीसिया का हर सदस्य इन जिम्मेदारियों का एक हिस्सा होता है, और यही सहयोग हमारे विश्वास का प्रमाण है।
- हमारी आर्थिक उन्नति होती है। हम सब ये जानते है की प्रभु हमें कई गुना ज्यादा देते है जितना हम उसे देते है बस शर्त इतना है इस उन्नति और आशीष को पाने के लिए आपके पास विश्वास होना आवश्यक है। ” जैसा तेरा विश्वास है, वैसा ही तेरे लिए हो। ” (मत्ती 8:13) ऐसा वचन कहता है। किसी पर भरोसा करें या ना करें प्रभु के वचन पर भरोसा करना ही हमारा प्राथमिकता होनी चाहिए जैसे की मरकुस 9:23 में लिखा है ” विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ हो सकता है। ” कहने का अर्थ है की यदि परमेश्वर के वचन में दिए गए वायदाओं पर आप विश्वास कर के उसका पालन करते और उसके अनुसार चलते है तो परमेश्वर ने कहा है वो होगा। जब हम परमेश्वर के लिए देते है तब परमेश्वर का वायदा हमारे जीवन में पूरा होता है। इसके द्वारा विश्वास बढ़ता है और विश्वास रखने के द्वारा हमारी आर्थिक उन्नत्ति होती है।
मुझे एक कहानी याद है जो मेरे एक दोस्त ने मझे बताया था क्योंकि ये घटना उसकी गवाही है। एक आदमी की आर्थिक कमाई बस उसके व्यवसाय पर ही निर्भर करता है, घर का पूरा परिवार उसकी रोज की कमाई पर आश्रित हुआ करता था। इसलिए वो रविवार को भी चर्च ना जा कर दुकान में ही काम करते रह जाता था। मेरे दोस्त के एक दोस्त ने ये सब देख रखा था सो एक दिन उसने उस आदमी से बात किया की उसे चर्च जाना चाहिए। इस पर उस आदमी ने पूरी दुःख भारी कहानी सुना दी। उसने उस आदमी से एक बात कहा की वो बस एक रविवार को अपनी दुकान बंद करके चर्च में सम्मिलित हो। और वो आदमी भी मान गया क्योंकि मेरे दोस्त के दोस्त ने उसे ये कहा की सोमवार से रविवार तक की कमाई जितनी होंगी उसे कही ज्यादा बस शनिवार तक के काम से आ जायेगा। आश्चर्य की बात उनके लिए और हमारे लिए गवाही – की उसके एक दिन के बंद के वजह से उसे हो रही कमाई से काफ़ी ज्यादा धन मिल गया था। लुका : 6:38 में लिखा है – ” दिया करो तो तुम्हे भी दिया जायेगा……
- कलीसिया के अवश्यकताएं पूरी होना। एक कलीसिया की कई जरुरत होती है। सुसमाचार प्रचार का कार्य, कान्वेंशन, ज़मीन खरीदारी, चर्च बनना, बिजली, पानी और पास्टर के परिवार के खर्चे, उनके बच्चे की शिक्षा, संडे स्कूल के कार्यक्रम, महिलाओं की सेवकाई, जवानों की संगती, कलीसिया में बाइबिल अध्ययन के लिए गए विद्यार्थियों के लिए आर्थिक सहायता, इस प्रकार ना जाने कितने अवश्यकताओं के लिए एक कलीसिया को खर्च करना पड़ता है। मुझे जितना पता था और देखा हुआ है मैंने लिख दिया पर ये भी मालूम है की इस से भी कही ज्यादा खर्चा हुआ करता है।
चर्च के पास्टर को कोई वेतन नहीं मिलता ओरों के जैसा, क्योंकि ये एक सेवा है। आप और हम तो मासिक वेतन या देहाड़ी पर काम करते है जिससे हमारी जीविका सांसारिक तौर से चलता है। हालांकि की कुछ संस्थाएं है जो बहुत से चर्च को सहयता राशि देते है पर आपको बता दूँ वो राशि उनके लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए चाहिए की हम सब अपने सेवक की मदद करें। हमारा पास्टर हमारा चरवाहा है और हम उनके भेड़े है। एक कलीसिया का सेवक वहाँ के भेड़ों अर्थात् वहाँ के विश्वासियों का चरवाहा है। प्रेरितों के काम : 20:28। एक सेवक को अच्छी तनख्वाह दें कर उनका ख्याल रखना एक कलीसिया की जिम्मेदारी है और कलीसिया हम और आप से ही बनता है। 1कुरिन्थियों 9:7 में परमेश्वर का वचन में कहता है भेड़ों की रखवाली करनेवाला उसके दूध से जीविकोपार्जन करें।
- आर्थिक विपत्ति से बचाव। दसवाँ अंश देने वाला व्यक्ति को होने वाली आर्थिक विपत्ति से परमेश्वर बचाएगा। दसवाँ अंश देने वाले व्यक्ति को, परिवार को परमेश्वर बड़ा बांधकर नाश और शत्रुओं से बचाता है। अय्यूब के घर के चारों ओर परमेश्वर ने बड़ा बांधकर स्वर्गदूतों के द्वारा सुरक्षित रखा। (अय्यूब 1:10) कितनी भी कोशिश करने के बावजूद भी शैतान अय्यूब को या उसकी आशीषों को छू नहीं पाया। दसवाँ अंश देने वालों के 90 प्रतिशत पैसा, दसवाँ अंश नहीं देने वालों के 100 प्रतिशत से अधिक फल देता है।
“सारे दशमांश भण्डार में ले आओ कि मैं तुम्हारे लिए नाश करनेवाले को ऐसा झिड़कूँगा कि वह तुम्हारी भूमि की उपज नाश न करेगा। और तुम्हारी दाखलताओं के फल कच्चे न गिरेंगे।” (मलाकी 3:10-11) यीशु ने कहा कि हमारी आर्थिक और आत्मिक बल की शान्ति का दुश्मन शैतान है। (यूहन्ना 10:10) हमारे विनाश के लिए शैतान दिन-रात कोशिश करता है। हमारे हर एक भण्डारियों को निष्फल बनाने के लिए वह कार्य करता है। दसवाँ अंश देने वालों के कार्यों में, मेहनत में, नौकरी पर प्रभु उसको शैतान के हर एक चाल से बचाता है।
तो कुछ इस प्रकार से हम देख सकते है की हमारे जीवन में दसमांश ही एक मात्र ऐसा साधन से जिस से हमारे आत्मिक जीवन को विकाश की राह में ले कर चल सकते है। इस लेख का निष्कर्ष यही है कि धन, जो हमें ईश्वर की कृपा से प्राप्त होता है, जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यह केवल सांसारिक सुख के लिए नहीं बल्कि आत्मिक प्रगति के लिए भी है। प्रभु ने हमें भौतिक संपत्ति और साधनों का भण्डारी बनाकर सौंपा है, और दसमांश के माध्यम से हम उनकी महिमा कर सकते हैं।
दसमांश का अर्थ केवल आर्थिक योगदान नहीं, बल्कि अपनी श्रद्धा, आस्था, और ईश्वर पर पूर्ण विश्वास का प्रतीक भी है। जब हम अपने धन का एक अंश प्रभु को समर्पित करते हैं, तो हम उस आशीर्वाद और कृपा के मार्ग खोलते हैं, जो हमारे जीवन को सकारात्मकता, समृद्धि और आत्मिक शांति से भर देता है। प्रभु का मार्ग हमें दिखाता है कि सच्ची समृद्धि केवल अपने लिए नहीं बल्कि देने में है, और यही देने की प्रक्रिया हमें आशीर्वाद, संतोष, और परम शांति का अनुभव कराती है।
- परमेश्वर का आज्ञा – परमेश्वर से प्रेम करें और एक-दूसरे प्रेम करें |
- फूल और इंसान: संघर्ष की दो राहें
- जीवन की उलझनों से बाहर कैसे निकलें?” या “क्या आपकी जिंदगी गोल-गोल घूम रही है? जानिए समाधान!
- CBSE Class 10 English: Complete Summary of First Flight & Footprints Without Feet
- Most Frequently Asked Questions in Class 10 English Board Exam
CORRECT………………….YOU GOT IT
It’s not only an article but a life changing mindset.
It’s not only an article but a life changing inspiration.
It’s true and we should follow it..
Very good
Leave a Comment