आखिरी पन्ना

सुबह के छह बज रहे थे। शहर अभी जाग ही रहा था, लेकिन चौधरी मोहल्ले की एक गली में उस सुबह असामान्य भीड़ जमा थी। कुछ लोग मोबाइल पर वीडियो बना रहे थे, कुछ फुसफुसा रहे थे, और कुछ बस चुपचाप स्तब्ध खड़े थे। भीड़ के बीच एक 17 साल का लड़का का लाश खून से लथपथ जमींन पर पड़ा हुआ था, पूछने पर पता चला की लड़का का नाम — आरव था जो अपने ही मकान की छत से नीचे गिरा पड़ा था। शरीर से खून बह रहा था, और उसकी आंखें अब भी खुली थीं… जैसे कुछ कहना चाहती थीं।

कुछ ही पल में पुलिस भी आई गयी थी, उन्होंने लाश को उठा कर स्ट्रेचर पर रख कर एम्बुलेंस में डाल दिया  और तब तक  मीडिया ने भी अपनी मेला लगा दी थी। पुलिस ने तहकीकात करना शुरू कर दिया था और सबसे पहले अराव की कमरे की तलाशी  ली गयी उसी दौरान आरव की स्टडी टेबल पर एक फटी हुई डायरी का पन्ना मिला, जिस पर लिखा था—

“माफ़ करना… अब और नहीं झेला जाता। थक गया हूं। कोशिश की थी, लेकिन शायद मैं वो नहीं बन सका, जो आप सब चाहते थे।” – आरव

जिसका सीधा सा मतलब बनता था की ये एक आत्महत्या है |

पूरा मोहल्ला सदमे में था। एक होनहार, शांत, पढ़ाकू बच्चा, जो हमेशा किताबों में डूबा रहता था, आज यूं अचानक से  खुद को खत्म कर लेगा—कोई सोच भी नहीं सकता था। सबलोग के जुबान में अच्छे छात्र के नाम पर अराव का नाम आता था | हर किसी को उनसे काफी उमीदें थी | घर के हर एक सदस्य का सीना गर्व से ऊँचा रहा करता था | घर में सब कुसल मंगल था |

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। असल कहानी तो अब शुरू होती है।

आरव दसवीं कक्षा का छात्र था। एक मध्यमवर्गीय परिवार का इकलौता बेटा। उसके पिता एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क थे और मां गृहिणी। घर छोटा था, लेकिन सपना बड़ा—“बेटा डॉक्टर बनेगा, नहीं तो कम से कम इंजीनियर तो बन ही जाएगा।”  सुबह – शाम बस सही सुनता रहता था और अराव का भी एक मात्र लक्ष्य था घर वालों की उमीदों पर खरा उतरना | सुबह 4 बजे से लेकर रात के 12 बजे तक उसका दिन पूरी तरह से तय था— स्कूल, ट्यूशन और फिर रात को रिवीजन। उसे फुर्सत नहीं मिलती थी…खुद के लिए साँस लेना तक भूल गया था । कई बार तो उसका दोस्त तक उसे घमंडी समझते थे क्यूंकि वो अपने दोस्तों को भी समय नही दे पा रहा था| क्लास में भी अगर शिक्षक आने में देरी कर देते थे तब तक वो बहुत से चैप्टर्स का अभ्यास कर लेता था और तो और जब खेलने वक़्त उनके सभी दोस्त खेल रहे होते है तब भी वो कुछ न कुछ पढ़ रहा होता है | बस उसके दिमाग में थोडा सा डर और थोडा सा अपने परिवार को खुश करने का जूनून था|

एक दिन स्कूल से लौटने के बाद वह थका हुआ सा बैठा था, आंखों के नीचे गहरे काले घेरे थे। तभी मां कमरे में आईं।
“आरव, खाना खा ले, फिर मैथमेटिक्स की ट्यूशन करने भी तो जाना है न।”
“मां… आज थोड़ा थक गया हूं। क्या मैं आज आराम कर सकता हूँ?” अराव ने बड़े शिथिलता से पूछा|
“थक गया है? बेटा, अभी मेहनत नहीं करेगा तो बाद में रोएगा। सब बच्चे जी-जान से लगे हैं। तू क्यों पीछे रहेगा ?” उसकी माँ ने थोडा सकती दिखाते हुए कही|
“हां मां…ठीक है ” कहकर वो उठ गया, लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान अब नकली लग रही थी। वो अब थोडा अलग और उदास रहने लगा था, उसके चहरे से रौनक ही खत्म हो गयी थी| वो हमेशा से ऐसा नही था पर उस दिन स्कूल में एक शिक्षक ने 80 में से 78 मार्क्स आने पर इतना डाँटा मानो उसने बहुत बड़ी गलती कर दी हो| अराव हमेशा से अच्छा अंक ही लाता था पर परीक्षा के नजदीक आने से वो बहुत ज्यदा परेशान था की  क्या होगा अगर वो जितना मार्क्स उनके शिक्षक और परिवार चाहते है की वो लाये, और ऐसा ना हुआ तो क्या होगा| इसी के वजह से जब प्री – बोर्ड एग्जाम में २ मार्क्स आने पर टीचर उसे डांटने लगे तो वो और ज्यादा  परेशान हो गया और लगा जैसे की वो नही कर पायेगा|   

उसके पिता का व्यवहार और सख्त था।
“तेरा मामा का बेटा को देख, 94% लाया है बोर्ड में। तू उससे कम क्यों लाएगा? हम लोग सपने छोड़ दिए हैं तेरे लिए। अब तेरा फर्ज़ है हमें गर्व दिलाना!” पिताजी आरव को उसके लिए किए गए बलिदान को बताते हुवे उसे समझा रहे थे | लेकिन आरव अब दिमाग हद से ज्यादा बिगड़ने लगा| सब जगह से बस ताने और डाँट ही मिल रहे है |


हर कोई बस उससे “ज़्यादा” की उम्मीद करता था—ज़्यादा नंबर, ज़्यादा मेहनत, ज़्यादा अनुशासन। हर किसी को उससे बस बेहतर की उम्मीद कर रहे थे |

वो स्कूल में भी कुछ खास नहीं बोलता था। अपने मे हमेशा रहता | गुमशुम गहरी सोच डूबा पर रहता ,मानो पूरा प्लैनिंग कर रहा हो की कैसे बोर्ड मे बेहतर किया जाए | दोस्त उससे कहते, “तू तो टॉपर है, तेरा क्या टेंशन?” लेकिन किसी ने भी उसके अंदर उठते तूफान को नहीं देख पा रहा था ।

एक दिन स्कूल में गणित की क्लास में टेस्ट हुआ। आरव ने 18/20 लाए।
“बस? तुमसे ये उम्मीद नहीं थी आरव!” टीचर ने पूरे क्लास के सामने डांटते हुए कहा।

वो चुप रहा, जैसे आदत सी हो गई हो उसे सब सुनने की… बिना जवाब दिए रह जाना। अब ये सब उसके लिए संभालना मुशकिल हो रहा था| घर मे भी वो अपने हालत को बयां नहीं कर सकता था | उसकी हालत को बस सोचने भर से शरीर मे सिहरन उठ जाती है तो ऐसे मे ये सोच पाना की आरव को कैसा लग रहा था होगा |

रात को डायरी में उसने लिखा—
“सबको लगता है मैं टॉपर हूं, तो मुझे सब आना चाहिए। लेकिन क्या कोई पूछता है कि मुझे किस चीज़ से डर लगता है? मुझे सबसे ज्यादा डर उस दिन से लगता है जब मैं सबकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाऊंगा।” वो हमेशा से डायरी नहीं लिखता था, लेकिन आरव ने अपने ही दसवी क्लास मे इंग्लिश किताब मे एक लड़की की कहानी पढ़ राखी थी| जिसमे वो लड़की अपनी सारी परेशानी को अपने डायरी मे लिखा करती क्यूंकी उसको भी सुनने वाला कोई नहीं था – तो इन्होंने भी यही करना शुरू कर दिया था |

धीरे-धीरे आरव की नींद उड़ने लगी थी। आंखों के नीचे काले घेरे गहरे होते जा रहे थे। वो अकेला छत पर अक्सर देर रात तक बैठा रहता, तारे देखता और अपने आप से बातें करता।
“कितनी चुप्पी है ना… आसमान में भी। लेकिन ये चुप्पी सुकून देती है, इंसानों की तरह ताने नहीं मारती।” ऐसे ही घंटों शांत पड़ा आसमान को देख खुदकों खुश रखा करता था |

फरवरी का महीना था। बोर्ड की डेटशीट आ चुकी थी। स्कूल और घर में माहौल, और सख्त हो गया था। हर किसी की नज़रें अब सिर्फ़ एक ही बात कह रही थीं—“अब गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।” बेहतर करने का जो स्ट्रेस लेवल था वो इतना हाई हो गया की मानो जैसे गैस मे राखी कुकर की सिटी जैसे बिना बोले कभी भी बड़ी जोर का आवाज करेगा|

इसी वजह से एक दिन अचानक वह स्कूल में बेहोश होकर गिर पड़ा। अनन फनन मे उसे अस्पताल ले जाया गया| डॉक्टर ने कहा—”चिंता की कोई बात नहीं है बस Anxiety और थकावट है। बच्चे को कुछ दिन आराम दीजिए।”
लेकिन घर आते ही मां बोलीं—
“अब आराम का टाइम नहीं है बेटा, बोर्ड्स सिर पर हैं। बस दो महीने की बात है। उसके बाद आराम ही आराम है जितना चाहो उतना आराम करना, हम सब कुछ नहीं कहेंगे।” हाँ ये तो मुझे भी पता है की ये बस एक छलावा है लेकिन उस उम्र मे भला किसको इतना समझ थी | ये बातें तो हर वो दसवी के बच्चों से कहा जाता | उसके बाद की जो जिंदगी है वो तो आराम शब्द को भुलवा देती है |

मम्मी की ऐसे बातें सुन बेचारा आरव से कुछ नहीं कहा गया । बस बड़े चुपके से आंखों के आंसू ने गिरने शुरू कर दिए, पर फिर भी आरव ने हाँ मे सिर हिलाया और कमरे में चला गया।

9 मार्च को आरव ने अपना आखिरी इग्ज़ैम पेपर दे दिया था। उसे लग रहा था कि पेपर खराब गया है। वह बहुत परेशान था। देर रात तक अपने नोट्स उलटता-पलटता रहा | कभी क्वेशन पढ़ता तो कभी ऐन्सर मिलाता | लिखते वक्त उससे कुछ प्रशनों के उत्तर हल नहीं हो पा रहे थे – पता नहीं ज्यादातर बच्चों को गणित मे ही परेशानी क्यूँ होती है | आरव भी एक बच्चा ही था और इस समय वो सही मनोदशा मे नहीं था – वही गणित के टीचर का डर ओर परिवार का उम्मीद सामने आ रहे थे | जिसके वजह से कुछ सवाल उसने जल्दी बाजी मे ही कर दिया था  

उस रात, आरव ने अपनी डायरी का आखिरी पन्ना लिखा—
“मैं कोशिश करता रहा… दिन-रात, नींद छोड़कर, अपनी जिंदगी की हर वो एशों –आराम को छोड़ दिया । लेकिन अब लगता है कि मेरी कोशिश कभी किसी के लिए काफी नहीं थी। शायद मैं ही गलत था—या शायद ये दुनिया ही बहुत तेज़ है मेरे लिए। मैं अब रुकना चाहता हूं। सुकून से सो जाना चाहता हूं। हमेशा के लिए…”

सुबह के करीब 5:30 बजे, वह चुपचाप उठा। मां रसोई में थी। उसने एक बार रुक कर मां की ओर देखा मानो जैसे वो उन्हे आखिरी बार थोड़ा जी भर देखना चाहता था और शायद कुछ कहना भी चाहता था—पर आज भी कुछ कह नहीं पाया।

चुप चाप वो छत पर पहुंचा, एक लंबी सांस ली, और खुद को हवा के हवाले कर दिया।

अगले दिन खबर टीवी पर थी—
“दसवीं बोर्ड का छात्र ने की खुदकुशी। कारण—पढ़ाई का दबाव या किसी प्रकार का डर ?” आज आरव हर किसी की घर के टीवी मे बोल रहा था पर अब भी उससे समझने वाला कोई नहीं था | वो बस एक लोगों क लिए लाश और टीवी, अखबार के लिए हेड्लाइन बनकर रह गया |

स्कूल में शोक सभा हुई। प्रिंसिपल ने कहा,
“आरव होनहार था। हमें यकीन नहीं होता कि वो ऐसा कदम उठा सकता है।”

लेकिन उस दिन पहली बार, आरव की खाली सीट देखकर उसकी क्लास बिल्कुल चुप हो गई। हर बच्चे की आंखों में एक ही सवाल था—
“हममें से अब अगला कौन?”



पुलिस ने जब उसके कमरे की तफ्तीश की, तो किताबों के बीच एक अधूरी उत्तरपुस्तिका मिली। उसमें सिर्फ़ एक वाक्य लिखा था—

“मेरी ज़िंदगी की तरह ये भी अधूरी रह गई। लेकिन मेरी बात कोई समझे, इससे पहले मैं चला गया। अगर अगली बार किसी और की कॉपी अधूरी मिले—तो उसे डांटना नहीं, शायद वो कुछ कहना चाहता हो।”

आरव अब नहीं है, लेकिन उसकी कहानी हर उस बच्चे की है जो दबाव में जी रहा है। जो अपने डर को शब्द नहीं दे पाता। जिसके हर आँसू बस तकिये में सूख जाते हैं।

हमें चाहिए कि हम बच्चों को नंबरों की दौड़ में न झोंकें। उन्हें सुनें, समझें…
क्योंकि ज़िंदगी एक परीक्षा है, लेकिन उसमें सबसे जरूरी है — “ज़िंदा रहना”।

3 responses to “आखिरी पन्ना”

  1. Devyani singh Avatar
    Devyani singh

    Don’t have words to state…such an emotional story about Arav. Despite being a bright student, he suicided. He taught world something, will this society understand it…?…

    1. admin Avatar

      that’s the situation of students nowadays. Didn’t you heard the news that a girl died after her father beaten her for not securing good marks in NEET mock test.

      1. Devyani singh Avatar
        Devyani singh

        Hm..😐

Leave a Comment